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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ भारतमें दुर्भिक्ष। चटक मटक पर न रीझें । स्मरण रखिए वह भारतीय वस्तु जिसे आप निकम्मी और अयोग्य समझे बैठे हैं, हमारी उद्धारकारिणी और सुख-सम्पति दायिनी है । हमें चाहिए कि हम बाह्य सुंदरतासे मोहित होकर उसे न अपनावें, बल्कि उसके सच्चे गुणोंसे । तभी संभव है कि देशकी भयंकर स्थिति सुधर सकेगी। + + + + नित्य हमारे काममें आनेवाली एक वस्तु और भी है, उसे हम लोग तैल कहते हैं । आजसे २५ अथवा ३० वर्ष पूर्व सारे देशका अंधशार तिल्लीके तैल अथवा अन्य किसी भँति उत्तम तैलसे दूर किया जाता था। बल्कि राज-प्रासादोंमें घृत भी जलाया जाता था। हमारे जलानेके उन पदार्थों में अनेक गुण थे। तैलकी शरीर पर मालिश अत्यंत बलकारक है, उससे कई प्रकारकी खाद्य वस्तुएँ तैय्यार होती हैं, देश में जिस ऑति घृत काममें लाया जाता है उसी भौति गरीब श्रेणीके मनुष्य तैल काममें लाते है। तैलकी दोपशिखा द्वारा कज्जल आदि प्राप्त कर नेत्रोंमें अजनकी भाति लगाते हैं, जो नेत्रोंके लिये अत्यंत हितकर वस्तु है । किंतु जबसे मिट्टीके तैलका आगमन हमारे भारतमें हुआ तबसे तिल्लीके तेलको लोगोंने पेंशन दे दी। आज एक साधारण गृहस्थकी पर्ण-कुटीसे लेकर एक गगनस्पर्शी राज-प्रासाद तथा हमारे भगवान् राम-कृष्ण आदि देवता ओंके देवालयों तकको इसने अपने अधीन कर लिया । करोड़ों मन मिट्टीका तैल अंधकार विनाश नार्थ भारतवर्ष में खरने लगा। इस तैलने भारतके स्वास्थ्यको अपने साथ भस्म करना आरंभ कर दिया और शोब ही भारतवर्षके बलवान् शरीरको निर्बल कर For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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