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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष । __ सात्विक दानसे श्री-वृद्धि,कीर्ति-वृद्धि, धर्म-वृद्धि और स्वर्गकी प्राप्ति तक होना हमारे महर्षियोंने लिखा है । भारतवर्ष में केवल दान ही एक अनुपम वस्तु है, जिससे बिना प्रयास ही स्वर्ग, अर्थ, काम और मोक्षकी प्राप्ति हो जाती है। हमारे शास्त्रों में बिना उत्तम दानके सम्पत्तिकी सारी शोभाको तुच्छ बताया है, यहाँ तक कि हाथोंका कर्तव्य-कर्म भी एक मात्र दान कहा है । मनुजी कहते हैं " यत्पुण्यफलमाप्नोति गां दत्त्वा विधिवद्गुरोः । तत्पुण्यफलमाप्नोति भिक्षां दत्वा द्विजो गृही।" अर्थात्-विधि-पूर्वक गुरुको गो दान करने पर जो फल प्राप्त होता है वही पुण्य-फल गृहस्थीको भिक्षा देनेसे होता है। हमारे यहाँ अन्नदानका कितना महत्त्व लिखा है " तुरगशतसहस्त्रं गोगजानां च लक्षं, कनकरजतपात्रं मेदिनीं सागरान्ताम् । - विमलकुलवधूनां कोटि कन्याश्च दद्यात्, नहि नहि सममेतैरन्नदानं प्रधानम् ।" अर्थात्-एक लाख गाय, घोड़, हाथी तथा सुवर्ण और चाँदीके पात्र, ससागरा वसुन्धरा और योग्य करोड़ कन्याओंका दान करने पर भी वह फल नहीं मिलता जो अन्नदान करनेवालेको मिलता है। किंतु बाबा तुलसीदासजीने लिखा है-- " जिनके लहहिं न मंगन नाही ते नरवर थोरे जग माहीं।" धर्मके शुभ लक्षणोंमें, दसमें से एक दान भी है।पर आजकल दानका रूप बेढब बिगड़ गया है। दानकी काया कलषित होनेसे ही सामा For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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