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भिक्षुक ।
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भिक्षुक ।
“He who truly lives,
Whose charity is free, But he who never gives,
Is dead as dead can be.” भारतवर्ष में दान धर्मसे सम्बन्ध रखता है। तभी तो हमार
शास्त्रोंमें--- " श्रवणसुखसीमा हरिकथा, सकलगुणसीमा वितरणम् । -" __ कहा है। धर्मकी दस उत्तम विधियोंमें दान भी एक है। निस्स्वार्थ और निष्काम हो कर, सच्चे और शुद्ध हृदयसे, दूसरोंको जो वस्तुतः सहाय्यापेक्षी अवस्थामें है, यथार्थतः सुखी तथा सन्तुष्ट बनानेकी प्रबल इच्छा और दया तथा उदारताकी तीव्र प्रेरणासे किसी उपयोगी वस्तुको श्रद्धा-पूर्वक देनेहीका नाम दान है। . निस्पृह हो कर और दान-पात्रके निकट स्वयं जाकर सद्भाव पूर्वक दान देना ही उत्तम दान है । यश, सुख और स्वर्गकी कामनासे, प्रत्युपकारकी आशा रखते हुए, दान-भाजनको अपने पास बुला कर, जो दान दिया जाता है वह दान मध्यम है। माँगने पर तिरस्कार-पूर्वक अनिच्छा प्रकट करते हुए दान देना अधम दान है। श्रीमद्भागवद्गीतामें भी भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रने उसे ही सात्विक दानका रूप दिया है जो देश, काल तथा सुपात्रका विचार करके दिया जाता है।
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