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भारतमें दुर्भिक्ष। नकी दृष्टिमें यूरोपियन और इण्डियन समान होने चाहिए, पर मोरीशसमें यह बात नहीं हैं।
हिन्दुस्तानमें हिन्दू और मुसलमानके उत्तराधिकारीका निश्चय उनके धर्म-शास्त्रानुसार होता है, इन्हींके अनुसार हिन्दुओं और मुसलमानोंको उनकी पैतृक आदि संपत्तिया प्राप्त होती हैं, परन्तु मोरीशसमें ांसीसी कानूनके अनुसार संपत्तियों के उत्तराधिकारी निश्चित होते हैं । हिन्दू और मुसलमानोंके यहाँ जो सम्पत्तिके उत्तराधिकारी समझ जाते हैं, उन्हें फ्रांसीसी कानून अपनी प्राप्य सम्पत्तिसे वंचित कर देता है। इसका कुपरिणाम यह भी होता है कि भारतीय कृषकोंकी जायदाद कितने ही छोटे छोटे टुकड़ोंमें बँट जाती है । इससे कृषकगण बन्धनमें फँस जाते हैं।
शिक्षाके विषयमें भी मोरीशस-प्रवासी भारतीयोंको बहुत कष्ट है । यद्यपि मोरीशसमें भारतवासी ७० प्रति शत हैं, तथापि उनकी सुविधाका कुछ भी खयाल नहीं किया जाता । मोरीशसमें ६ भाषाएँ प्रचलित हैं;तमिल, तेलगू , हिन्दी, अंगरेजी फ्रेंच और मोरीशियन । जो भारतीय लड़के स्कूलोंमें पढ़ते हैं, उन्हें अँगरेजी और फ्रेंच द्वारा शिक्षा दी जाती है। ऐसा करनेमें मोरीशस-सरकारका उद्देश यही है कि इन लोगोंमें देशी भाव और राष्ट्रीय विचार उत्पन्न न होने पावें । यदि कोई लड़का स्कूल में पढ़ता है तो वह साधारणतया ४ भाषाएँ सीखता है । घरमें तो वह अपने देशकी भाषा बोलता है और बाहर उसे मोरीशस की दोगली भाषा “क्रोल ” में बातचीत करनी पड़ती है तथा स्कूल में अँगरेजी और फ्रेंच सीखता है । लेकिन इन चारों भाषाओंमेंसे उसे यथार्थ योग्यता एक भी भाषामें प्राप्त
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