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भारतमें दुर्भिक्ष ।
बहुतसी बड़ी बड़ी बुराइयाँ और अन्यान्य दोष उत्पन्न हो गये हैं। सन् १८७९ ई० में जिन अन्यायों और बुराइयोंकी शिकायत की गई थी उनकी जाँच करनेके लिये एक कमीशन नियुक्त किया गया था । इस कमीशनने कितने ही सुधारोंकी आवश्यकता बतलाई और तदनुसार कुछ सुधार कर भी दिये गये । लेकिन प्लाण्टर लोग कृष्णवर्ण जातियोंके अधिकारोंको विशेषतः आदरकी दृष्टिसे नहीं देखते । यदि उच्चाधिकारी वर्ग बड़ी सावधानता पूर्वक 'कुली प्रथा' पर अपना अधिकार न रखे तो इस प्रथामें अनेक निकृष्ट बुराइयोंके पैदा होने की संभावना है ।
मोरीशस - प्रवासी भारतीय भाइयोंको क्या क्या कष्ट सहने पड़े अथवा सहने पड़ते हैं इसका संक्षेपमें यहाँ वर्णन किया जाता है ।
मोरीशस प्रवासी भाइयों को जो थोड़े बहुत राजनैतिक अधिकार हैं, वे उनका उपयोग नहीं कर सकते । इसका कारण यह है कि उनकी उन्नति और अवनति बहुधा गोरे जमींदारों और कारखानेवालों पर अवलम्बित है । कभी तो हिन्दुस्तानियों के पास गोरों की जमीनका कुछ रुपया बाकी रहता है और कभी खाद मोल लेनेके लिये हिन्दुस्तानियोंको गोरोंसे रुपया उधार लेना पड़ता है। इस भाँति हिन्दुस्तानी लोग गोरोंका मुंह ताकते रहते हैं ।
मोरीशसको जिस समय कुली भेजना प्रारंभ हुआ था, उस ममय स्त्रियोंके ले जाने की प्रथा नहीं थी, परन्तु कई वर्षों के बाद मैकड़े पीछे ३३ स्त्रियाँ ले जाना गुमाश्तोंने उचित सझा । स्त्रियों की संख्याकी कमीसे जो जो नैतिक हानियाँ हुईं उनके लिखनेकी आवश्यकता नहीं है । पाठक स्वयं अनुमान कर सकते हैं ।
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