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भारतमें दुर्भिक्ष। the brutal treatment which coolies often receive from ship captains and masters.”
अर्थात्-ब्रूहम तथा दासत्व प्रथाके विरोधी दलने इस कुलीप्रथाकी बड़ी निन्दा की और कहा कि यह गुलामीका नवीन रूप है,
और बंगालकी सरकारने इसे कुछ दिनोंके वास्ते इस लिये बन्द कर दिया कि तब तक इसकी हानियोंकी जाँच की जाय । इस प्रथाकी हानियों और दुरुपयोगोंका पता इसी बातसे लग सकता है कि जाच करनेवालोंने भरतीकी प्रथामें जिन छल-पूर्ण तरीकोंसे काम लिया जाता था उनके कारण, और जहाजोंके कप्तानों तथा अन्य कर्मचारी भारतीय मजदूरोंके साथ जो जंगलीपनका बर्ताव करते थे उसके कारण, उसकी अत्यंत निन्दा की है ।
फ्रांसीसी बैरिस्टर मि० देपीनेने भारतीयोंका बहुत कुछ पक्ष ग्रहण किया। इसके बाद मोरीशसमें तेमिलके प्रोफेसर राजरत्न गुदालियरने बहुत कुछ प्रयत्न किया, परन्तु सरकारी नौकर होने की वजहसे वह प्रकाश्य रूपसे कोई आन्दोलन नहीं कर सके । अन्तमें उन्होंने सहृदय फ्रांसीसी मि० एडोल्फडे प्लेविट्जके द्वारा एक प्रार्थना-पत्र महाराणी भारतेश्वरीके औपनिवेशक मंत्रीके पास भेजा, जिसमें यह निवेदन किया गया था कि एक शाही कमीशन द्वारा मोरीशस प्रवासी हिन्दुस्तानियोंकी दशाकी जाँच की जाय । तदनुसार सन् १८७१ ई० में जाँचके लिये कमीशन नियुक्त हुआ । सन् १८७५ ई० में कमीशनने अपनी रिपोर्ट साम्राज्य-सरकारके सामने पेश की। इस रिपोर्टका तात्पर्य यह था कि कुलियोंके साथ जो बर्ताव किया जाता है, वह अत्यन्त असन्तोष-जनक है और वे पूर्णतया
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