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विदेशी शक्कर।
RAJAmr
ANNA
क्या उस गन्नेकी बनी हुई देशी खाँडकी-जिसका रस अमृतके समान ठंडा और गुणदायक है और जिसकी राब बनानेके समय ‘पकनेकी गर्मीको भारतवर्षके दूरदर्शी विद्वानोंने जलमें ऊगी हुई घास ( कंजी के द्वारा धीरे धीरे शोरेमेंसे निकाल कर खाँडको ठंडी, पुष्टिकारक,रोग-नाशक और लाभदायक बना दिया है-किसी प्रकार भी बराबरी कर सकती है ?
इस विदेशी खाडका इतना अधिक प्रचार हो गया है कि प्रति सहस्र दस मनुष्य बड़ी कठिनतासे देशी खाँडके खानेवाले मिलेंगे । यदि नित्यकी आधी छटाँक खाँड भी प्रति मनुष्य मान ली जावे--क्योंकि बहुतेरे दरिद्रोंको तो खाँड कभी स्वप्नमें भी नहीं मिलती-तो लगभग ढाई लाख मन शक्कर भारतको एक दिनमें चाहिए अर्थात् छः करोड़ मन शक्कर प्रति वर्ष भारतवासियोंके उदरमें समा जाती है । यदि इसमेंसे ३ करोड़ मन शक्कर विदेशी मान ली जाय तो तीन करोड़ रुपया भारतवर्षका शक्कर खाने के लिये हिन्दुस्तानसे बाहर. निकल जाता है ! कहिए मीठा मुंह आप करते हैं या कि विदेशी ! हम अपने हाथों अपने प्यारे देशको कंगाल कर रहे हैं; अपनी मूर्खतासे भारतका भविष्य मिट्टीमें मिला रहे है; अपने हाथों दुर्भिक्षका भारतमें आह्वान कर हर्ष-पूर्वक स्वागत कर रहे हैं। प्यारे भाइयो ! यदि आप एकदम इस शक्करका बहिष्कार कर दो तो धन और धर्म दोनोंकी रक्षा कर भारतका हित कर सकते हो। अपनी जिव्हा इंद्रियको जरा दमन करनेसे यह कार्य अच्छी तरह हो सकता है । हम भारतीयोंके लिये हमारे शास्त्रकार महर्षियोंने इन्द्रिय-दमन एक अपूर्व तप बतलाया
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