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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष। है, तो क्या आप केवल जिव्हा-इन्द्रियको अपने अधीन नहीं रख सकते ! महात्मा बुद्ध, स्वामी शंकराचार्य, देशभक्त प्रताप, शिवाजी, -स्वामी दयानन्द सरस्वती आदिने अपने देशके कल्याण-साधनार्थ प्राण तक दे दिये, अनेक दारुण कष्टसहे तो क्या आप उनके अनुयायी भारतके दुःख-निवारणार्थ तनिक भी कष्ट न सह कर, इस भाँति दुर्भिक्ष राक्षसको अपने देशबन्धुओंका संहार करता देख कर प्रसन्न होगे ? क्या आपको यह भी नहीं मालूम कि यही दशा रही तो एक दिन दुर्भिक्षके कुचक्रमें हमें भी पड़ना होगा ! __ अब हम जहँ। यह अपवित्र शक्कर बनती है, उस देशका वर्णन संक्षिप्त रूपमें पाठकोंके सम्मुख इस लिये रखना चाहते हैं कि वहाँके निवासी भारतीय बन्धुओंकी दुर्दशा पर आप जरा ध्यान दें । हम तो यहाँ पर वहाँकी बनी शक्कर खाकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं, परन्तु हमारे भाइयोंकी वहाँ कैसी दुर्गति है इसे भी पढ़ जाइएयदि आपको तनिक भी अपने देश-भाइयोंसे अनुराग होगा अथवा चित्तमें दया होगी तो आप कदापि उस देशकी बनी शक्कर छुएँगे भी नहीं । जिस देशमें यह शक्कर बनतो है उस स्थानका नाम है 'मोरीशस' टापू । इसी टापूके नामके कारण यह शक्कर “ मोरस शक्कर" के नामसे पुकारी जाती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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