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भारतमें दुर्भिक्ष । ऊपर लिखित अँगरेजीके उद्धृतांशका हिन्दी अनुवाद करना केवल पृष्ठोंका बढ़ाना है। सारांश यह है कि कई डाक्टरोंने डाक्टरी परीक्षा द्वारा सिद्ध किया है रंगीन विदेशी मिठाई एक अति विषयुक्त पदार्थ है, जिसके सेवनसे अनेक बालक बेमौत मर गये । इत्यादि
रिसाला ( मासिक पत्र ) " मुफीदुल मुजारईन " माह अक्टूबर सन १९०३ में प्रकाशित हुआ था कि-"जिन पौदोंसे मिश्री निकलती है, उनमें गन्ना अव्वल दर्जे पर है, और चौदहवीं सदी तक युरोपके देशोंमें न तो गन्ना था और न गुड़-शक्कर।तमाम चीनी और कन्द वगरह हिन्दोस्तानसे ही वहाँ जाते थे । अफसोसके साथ लिखा जाता है कि वह हिन्दुस्तान जो तमाम यूरोपका, गुड़ और शक्करसे मुंह मीठा करता था वही अब अपनी जरूरतोंके लिये दूसरे मुल्कोंका मुहताज है । सन् १८३६ ई० से पहले अपना खर्च निकाल कर हिन्दुस्तानसे २ करोड़ रुपये की शक्कर वगैरह मुमालिक गैरको जाया करती थी मगर सन् १८९० ई० में ३३९७९८६१) रु० की चीनी और गुड़ दूसरे मुल्कोंसे हिन्दोस्तान में आया । और यह भी लिखा है कि गन्नेके सिवाय खजूर, छुहारे, मकई, जुवारकी डण्ठल,. बोट (Qeet ) चुकन्दर, नारियल, ताड़ी, मैपिल, शलगम, गाजर, गेहूँ, आलू, दूध, तारकोल इत्यादि अनेक वस्तुओंसे भी चीनी निकाली जाती हैं । यहाँ तक कि हज़रत कारीगरने मनुष्यके मूतसे भी चीनी निकाली है । और एक करखानेका जिक्र लिखा है जिसमें २४ घंटेके अन्दर चुकन्दरसे शक्कर बिलकुल तैय्यार हो जाती है। सोचिए ऐसी वस्तुओंसे तथा इतनी शीघ्र बनी हुई विदेशी खाड
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