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तमाखू।
षको प्रायः प्रमेह, स्वप्नदोष आदि भयंकर नाशकारी रोगोंके मुखमें फेंकनेवाली यही एक मात्र वस्तु तमाखू है । इसके ही कारण भारतका असंख्य धन दवाई, औषधियों में जाता है ।
किसी तमाखू-सेवन करनेवालेसे इसके गुण पूछ देखिए, यदि वह सत्यवक्ता है तो निःसन्देह इसे अत्यन्त हानिप्रद दुर्व्यसन ठहरावेगा। अँगरेजोंकी देखादेखी इसे काममें लाना भूल है क्योंकि वे शीत देशके वासी हैं, अतः उन्हें यह लाभदायक है; किंतु भारतबासी बिना सोचे समझे इसका प्रयोग कर क्यों भारतको निर्बल
और निर्धन कर रहे हैं, इसका कोई कारण ही समझमें नहीं आता। हम भयंकर हानि सह कर भी इसका सेवन करते हैं, आश्चर्य है !
भारतमें प्रतिवर्ष ५६००००० मन तमाखू पैदा होती है । अमेरिकाके बाद तमाखूकी पैदावारमें दूसरा नम्बर भारतवर्षका हो है। अमेरिकामें १३५००००० मन तमाखू पैदा होती है। किंतु भारतकी भैाति वह सारी तमाखू अमेरिका ही नहीं फूक देता है, बल्कि बहुतसा भाग अन्य देशोंकी आवश्यकता पूर्तिके काम आता है। यदि अमेरिका दूसरे देशोंकी आवश्यकता पूर्ण करता है तो भारत दूसरे देशोंसे खरीद कर अपनी आवश्यकता पूरी करता है । अब ज़रा आप ही विचार देखिए कि भारतका कितना पैसा व्यर्थ तमाखू द्वारा नाश हो रहा है। इन्हीं कारणोंसे दरिद्रता और दुर्भिक्षने हमारा संहार करना प्रारंभ कर दिया है । __ इसी प्रकारकी एक दो महा अनर्थकारी मादक वस्तुएँ और भी हैं, उनके नाम हैं कहवा, चाय । हमारे भारतमें अभी तक कहीं कहीं देखनेमें आया है कि लोग मादक द्रव्य अपने गुरुजनों तथा
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