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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ भारतमें दुर्भिक्ष। स्तान और बलिस्तान तथा बर्लिनमें भी तमाखूका सेवन एक बड़ा पाप है। पारसी भाई अग्निकी पूजा करते हैं और इनके धर्ममें तमाखू पीना सौगन्धकी तरह एक धार्मिक बात है। हमारे आर्यशास्त्रोंमें तो इसको महानिंद्य और अस्पृश्य वस्तु बताई है । सिक्खोंके दसवें गुरु गुरु गोविन्दसिंहजीने भी अपने शिष्योंको तमाखूके त्याग करनेकी आज्ञा दी थी, जिसके कारण पंजाबो सिक्ख अभी तक तमाखूको स्पर्श करना महापाप समझते हैं । वर्तमानमें तमाखूके कई रूप और कई नाम हैं । जैसे-सिगरेट, सिगार, चुरुट, बीड़ी आदि। आजकल सिगरेट पीना फैशनमें शामिल है, इसको बिना पिये पश्चिमी ढंगका सारा पहनावा धूल है। जिस भैाति विदेशी पोशाकोंके साथ सामने मस्तक पर बाल रखा कर माँग-पट्टो निकालना फैशन पर मुलम्मा करना है, उसी भैौति फैशनका दूसरा मुलम्मा सिगरेट पीना भी है । इसके साथ ही साथ विदेशी दियासलाईकी भी भारतमें खूब खपत होती है । आजकल किसी महाशयके आने पर उसके स्वागत-रूपमें सबसे प्रथम दो डिब्बिया रख दी जाती हैं, एक तो सिगरेटको और दूसरी दियासलाईकी! भारतवर्ष गर्म देश है । इसके लिये दरिद्रताका कारण तो यह है हो, किंतु साथ ही गर्म वस्तु होनेके कारण भारतीयोंको अल्पायु और क्षीणवीर्य बनाने में भी यह एक प्रवल शत्रुके समान है। छोटी अवस्थामें कामोत्तेजन द्वारा निर्बलता उत्पन्न करनमें, वोर्य को दूषित करने एवं पतला करने में यह एक ही रामबाण वस्तु है। प्रत्येक पुरु. For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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