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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तमाखू । धन इस अनर्थकारी व्यसनमें बरबाद हो रहा है। प्रति शत बड़ी कठितनासे ६ या ७ मनुष्य ऐसे मिलेंगे जो तमाखूका व्यवहार नहीं करते, बाकी कोई सूंघता है, कोई खाता है और कोई पीता है। यदि ३१३ करोड़ भारतवातियोंमेंसे २६ करोड़ ऐसे मनुष्य मान लिये जायें जो तमाखूका सेवन नहीं करते तो २९ करोड़ तमाखू खाने, पीने और सूंघनेवाले लोग बच रहते हैं। अब इनका तमाखूका खर्च कमसे कम एक पैसा रोज मान लिया जाय तो एक मासमें १४५००००००) २० और १७४०००००००) रु० प्रति वर्ष भारतका तमाखू-खर्च है ! . संसारमें आजकल प्रति वर्ष चालीस लाख मनुष्य केवल क्षयरोगसे ही काल-कवलित होते हैं। केवल बम्बई प्रान्तके ही विषयमें सुनिए, वहाँ हर साल साठ हजार मनुष्य मरते हैं। बुद्धिमानोंकी सम्मति है कि जैसे जैसे तमाखूका सेवन दिन दिन बढ़ता जाता है, वैसे वैसे तपेदिकसे मरनेवालोंकी संख्या वृद्धि पा रही है । डाक्टर अल्नस साहबका कथन है कि " तमाखू सेवन करनेवालोंको पाण्डुरोग हो जाय और उनका रुधिर सूख जाय तो कोई आश्चर्य नहीं । इसका कारण यह है कि तमाखूसे अजीर्ण होता है जिसका परिणाम यह होता है कि रक्त सूख जाता है, और शरीर काँटा सा हो जाता है । रुविर ही जीवनका कारण है । इसके कम होनेसे निर्बलता हो कर क्षय हो तो इसमें आश्चर्य ही क्या ?" विख्यात डाक्टर और बहुतसी पुस्तकोंके लेखक, श्रीमान् आर० डी० ट्राल साहब एम० टी० कहते हैं कि--" शराबसे भी अधिक भयानक और नवयुवकोंमें अधिक प्रचलित एक भयानक और बुरी For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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