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भारतमें दुर्भिक्ष ।
आदत तमाखू सेवनकी है। यदि हम इस आदतकी गन्दगी और असभ्यताको भुला नहीं देते तो अपने देश के नवयुवकों के शरीरों को जड़ से सत्यानाश करके शारीरिक बलको नष्ट कर उसका सर्वथा नाश करते हैं । जिस वस्तुका ऐसा भयानक परिणाम है उसका प्रचार दिनों दिन बढ़ता जाता है । "
डाक्टर वुडबर्ड साहबका कथन है कि - " तमाखूसे मृगी, स्वरभंग, जीर्णज्वर, छाती और सिर में दर्द, कम्पवात, शिरोविभ्रम, अजीर्ण, नाडीव्रण, उन्माद आदि कई रोग हो जाते हैं। " डाक्टर ब्राऊन साहबका कहना है कि - " तमाखू खाने-पीने या सूँघनेसे निम्न रोगों के होनेका भय है । मन्ददृष्टि, शिरःशूल, मूर्च्छा, अफरा, निर्बलता, गला पड़ना, कम्पवायु, भूतोन्माद तथा ऐसे ही और कई प्रकार के रोग । कभी दिलका उदास होना और कभी कभी पागल भी तमाखूसे हो जाता है, यह कई डाक्टरोंका मत है
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जो देश इसकी भयंकर हानिको समझते हैं वे इस दुर्व्यसनके दूर करनेकी सतत चेष्टा करते रहते हैं । अमेरिका में तमाखूकी विरोधक अनेक सोसाइटियाँ हैं । उनका काम दिनरात तमाखू सेवनको घटाना है । वे अच्छी प्रकार सफलता पा रही हैं । न्यूयार्क की तमाखू विरोधक सभाकी ओरसे नीचे लिखे अमूल्य शब्द प्रकाशित किये गये हैं-" जिन थैलियोंमें थूक बनता है, तमाखू खाने या पीने से वे थैलियाँ सूख जाती हैं, और इस कारण से तमाखसेवनके बाद अन्य किसी मादक द्रव्यके पान करनेकी इच्छा होती है ।" डाक्टर अलसनका कथन है कि तमाखू " मुहँ में थूक आदि उत्पन्न करती है, और जब वह थूक निकाल दिया जाता है तब प्यास
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