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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० भारतमें दुर्भिक्ष । Vvvvvvvvvvv धूम्रपानरतं विप्रं दानं कृत्वाति यो नरः। दातारो नरकं यांति ब्राह्मणो ग्रामशूकरः ॥ --पद्मपुराण । तमालं भक्षितं येन स गच्छेन्नरकार्णवे । विदेशी लोगोंने तथा आधुनिक वैद्य-डाक्टरोंने ही तमाखूको निंद्य ठहराया है, यह बात नहीं है । हमारे पुराण आदि भी साफ इन्कार करते हैं । ऊपरके श्लोकोंमें तमाखू पीनेवाले ब्राह्मणको दान देनेवालेको नरक और ब्राह्मणको मृत्यु-बाद ग्राम-शूकर कहा है और खानेवालेको भी नरकका दुःख लिखा है। " गोलोके गरुडो गोभिर्युद्धं चैव चकार सः। गरुडस्य च तुण्डेन पुच्छकर्णस्तदापतन् । रुधिरोपि पपातोव्यां त्रीणि वस्तूनि चाभवन् । कर्णेभ्यश्च तमालश्च, पुच्छाद्गोभी बभूव च । रुधिरान्मेहदो जाता मोक्षार्थी दूरतस्त्यजेत् ।" -एकादशी महात्म्य । अर्थात्-एक बार गोलोकमें गरुड़ और गायोंमें युद्ध ठन गया। गरुड़की चोंचोंके प्रहारसे गायोंके कान और पूछे गिर गईं, जिनसे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई। कानसे तमाख, पूँछसे गोभी और खूनसे मेहँदी, अत एव मोक्षके इच्छुकोंको इससे दूर ही रहना चाहिए । यहाँ उक्त श्लोकों को उद्धृत कर हमें न तो तमाखूकी ही निंदा करना है और न उसके सेवकोंको ही कुछ कहना है। हमें यह। यह दिखलाना है कि देशकी भयंकर दरिद्रता और प्रचण्ड दुर्भिक्षका एक कारण भारतवासियोंका तमाखूका सेवन भी है। देशका बहुतसा For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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