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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वदेशी वस्तु तथा पहिनावा । १२५ ~~~~~~~~wwmmmmmmwwwwwwwwwww mmmmmmmmm अनाचार और अन्ध अनुकरणके द्वारा इस भारतवर्षसे दूर नहीं कर सके हैं । इस मृत्युके भयसे रहित आत्मगत शक्तिने संयम, विश्वास और ध्यानके द्वारा भारतवर्षको उसके मुखकी कांतिमें सुकुमारता, अस्थिमज्जामें कठोरता, लोक-व्यवहारमें कोमलता और स्वधर्मकी रक्षामें दृढ़ता दी है। इस शान्तिमयी विशाल शक्तिका अनुभव करना होगा-एकाग्रताकी आधार भूत इस भारी कठिनताको जानना होगा । भारतके भीतर छिपी हुई वह स्थिर शक्ति ही अनेक शताब्दियोंसे, अनेक दुर्गतियों में, हम लोगोंकी रक्षा करती आती है। याद रखो समय पड़ने पर यह दीन हीन वेशवाली, आभूषण-हीन, वाक्य हीन, निष्ठा-पूर्ण शक्ति ही जाग कर सारे भारतवर्ष पर अपनी अभयदायक मंगलमय बाहकी छाह करेगी। अँगरेजी कोट, अंगरेजी दूकानोंका सामान, अँगरेज मास्टरोंकी गिटपिट बोलीकी पूरी पूरी नकल, इन सबमें से कुछ भी उस समय नहीं रहेगा; किसी काम नहीं आवेगा। आज हम जिसका इतना अनादर करते हैं कि आँख उठा कर भी नहीं देखते; जिसे इस समय हम जान नहीं पाते; अँगरेजी स्कूलोंके झरोखोंमेंसे जिसके सँवार-सिंगारसे रहित झलक देख पड़ते ही हम त्यौरी बदल कर मुंह फेर लेते हैं, वही सनातन महान् भारतवर्ष है । वह हमारे व्यारव्यान-दाताओंके विलायती ढंगके ताली पीटनेके ताल पर हर एक सभामें नाचता नहीं फिरता, वह हमारे नदी तट पर कड़ी धूपसे भरे भारी सुनसान मैदानमें केवल कोपीन पहिने कुशासन पर अकेला चुपचाप बैठा है। वह प्रबल भयानक है, वह दारुण सहनशील है, वह उपवासव्रत धारण किये हुए है । उसके दुर्बल हड्डियोंके ₹ाँचेमें प्राचीन For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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