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भारतमे दुर्भिक्ष ।
भाव बतलाते हैं । उस समय “ एक रुपयेका छः मन दूध मिलता था।" आश्चर्य न कीजिए यह बिलकुल सत्य है ।। . . जब सन् १८५७ ई० में ईस्टइण्डिया कम्पनीका शासन फैला हुआ था, उस समय एक रुपयेके ३९ सेर गेहूँ, साढ़े ५१ सेर चने, १८ सेर चावल, ४ मन दूध और ४ सैर घी बिकता था।
सन् १८९० अर्थात् आजसे ३० वर्ष पूर्व ही एक रुपये के २५ सर गेहूँ, २८ सेर चने, १२ सेर चावल, पैसे सेर दूध, रुपयेका दो सेर घी और २३ सेर उड़द मिलते थे।
परन्तु सन् १९१८ में एकदम दुर्भिक्षका वज्र टूट पड़ा और एक रुपयेके ५ सेर गेहूँ, ६ सेर चने, ३ सेर चावल, ४ सेर दूध, ४ सेर उड़द और नौ छटॉक घी बिकने लगा और सन् १९२० में घीका भाव ५|| छटाक ही रह गया !
जिन दुधमुंहे बच्चोंको भारतमें जलकी भाँति घी और दूध पीनेको मिला करता था वही अब घी और दूधकी महँगीसे सब देशोंसे अधिक भारतमें मरते हैं । उक्त सभापति महोदयने बच्चोंको मृत्यु-संख्याका हिसाब इस प्रकारसे बतलाया था ।
एक वर्षसे दो वर्षकी अवस्थावाले बच्चे इंग्लैण्ड में फी सैकड़ा आठ, आस्ट्रेलियामें ७ और भारतमें फी सैकड़ा ४८ मरते हैं। २ से ३ वर्ष तकके बालक इंग्लैण्ड में फी सैकड़ा ९, आस्ट्रेलियामें १२ और भारतमें ११ मरते हैं। ३ से ४ वर्ष तकके इंग्लैण्ड में फी सैकड़ा ७, आस्ट्रेलि. या १२ और भारतमें ५ मरते हैं। ४ से ५ वर्ष तककी अवस्थावाले इंग्लैण्डमें फी सैकड़ा ९, आस्ट्रेलियामें १३ और भारतमें ११ मरते हैं ।
इस हिसाबसे स्पष्ट सिद्ध होता है कि एकसे दो वर्ष तककी
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