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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ पशु-धन । चमड़ा न हो तो हम इस शरद-देशमें मर जायँ, इसी कारण हम इसे पूजते हैं । स्वीडन और फिन्लैण्डके रहनेवाले भी जानवरों को पूजते हैं। मनुष्यका यह स्वभाव ही है कि जिससे उसको लाभ होता है, उसकी वह इज्जत और बड़ाई करता है । फिर यह दूध, घी तथा अन्न-वस्त्र-दाता, गाय और बैलका हमारे महर्षि धर्मसे सम्बन्ध कर गये तो कुछ बुरा काम नहीं किया, बल्कि वे संसार अरका उपकार ही कर गये हैं। __ अब हमें यह देखना है कि क्या दुर्भिक्षका कारण गो-वध है ? आजकल जो भारतके प्रत्येक प्रान्तमें घोर दुर्भिक्ष फैला हुआ है उसके अनेक कारणोंमेंसे एक प्रधान कारण गो-वंशका नाश भी है। क्योंकि भारतभूमिकी उपजाऊ शक्ति गो-वंशके साथ-ही-साथ विनष्ट होती जाती है । कारण भारतके बैल, गौ तथा भैंस आदि पशु केवल मनुष्य जातिको ही घृत-दुग्धादिसे परिपालित नहीं करते, बरन् उनके गोबरकी खादसे खेतोंकी उपजाऊ शक्ति बढ़ती है, गोबरके कण्डोंसे भोजन बनता है, जिससे वृक्ष काट कर जलानेकी आवश्यकता कम रहती है। जिस देश में वृक्ष अधिक और हरे-भरे रहते हैं वहँ! वर्षा बहुत होती है । भारतकै बैल और भैंसें हल जोतने, कोल्हू चलाने और गाड़ियों के द्वारा व्यापार तथा मनुष्योंकी यात्रामें बड़े ही काम देते हैं । हाय आज उसी गो-वंशका तथा महिषवंशका ऐसे अविचारसे नाश किया जा रहा है कि जिससे थोड़ेसे मनुष्योंका पेट पालन होता है, पर समस्त भारतका नाश होता जा रहा है। एक ओर प्रति दस वर्ष भारतकी जन-संख्या बढ़ती है तो दूसरी For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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