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भारत में दुर्भिक्ष |
दुखी गाय-भैंसोंका दूध पीते हैं वे उनका दूध नहीं बल्कि.......... पीते हैं, यह कह दें तो अनुचित न होगा ।
गायका धर्मसे क्यों सम्बन्ध है ? इस प्रश्नका यह उत्तर है कि हमारे त्रिकालदर्शी महर्षि प्रत्येक उपकारी पदार्थका धर्मसे इस लिये सम्बन्ध जोड़ गये हैं कि अज्ञानी जन उनके गुणोंको न जान कर कहीं उनके अपमान द्वारा संसारका अपकार न कर सकें । इस कारण वे उपकारी गौ आदि चैतन्य पदार्थों से लेकर पीपल, तुलसी आदि जड़ पदार्थों तकका धर्म से सम्बन्ध जोड़ गये हैं कि जिससे अज्ञानी जन धर्मके भयसे उपकारी पदार्थों का अपमान या नाश न कर सकें। यह कृत्य केवल हमारे ही महर्षियोंका नहीं है। देखो हजरत मोहम्मद साहब खजूरके वृक्षकी कैसी बड़ाई करते हैं । मोहम्मद साहब फरमाते हैं -- “ बड़ाई करो अपने खजूरके वृक्षकी जो मिट्टी आदमकी बनावटसे बची थी, उससे खजूरका वृक्ष खुदाने बनाया । " इसी लिये मोहम्मद साहब ने आज्ञा दी है कि खजूर के वृक्षको मान्य समझो ।
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अब यह प्रश्न होगा कि खजूरका वृक्ष इतना मान्य क्यों है ? उत्तर यह है कि यदि खजूर के वृक्षको इतना आदर नहीं दिया जाता तो मूर्ख मुसलमान लोग उस वृक्षको नष्ट कर डालते और उसके नष्ट होने पर जीवन निर्वाह के लिये उन्हें कठिनाई पड़ती। क्योंकि उस समय अरबमें सिवाय खजूर - वृक्षके और कोई पदार्थ मनुष्यों के जीवनका आधार नहीं था । इसी कारण उसका इतना मान करना लिखा गया है। साइबेरिया देशके रहनेवाले बकरीके चमड़ेको पूजते हैं, जब उनसे इसकी पूजाका कारण पूछा जाता है तो वे उत्तर देते हैं कि यदि बकरीका
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