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पशु-धन । है। इन दिनों कलकत्तेमें पंजाब, राजपूताना, युक्त प्रदेश और बिहार आदि प्रान्तोंसे अच्छी अच्छी गौएँ-भैंसें आआ कर नष्ट हो रही हैं।
कलकत्तेके ग्वालोंके घरोंमें न तो कभी गौ-भैंस गाभिन होती हैं, न कभी ब्याती ही हैं । वे थोड़े दिनकी ब्याई बाहरसे आई हुई गौएँ खरीदते हैं और तत्काल उनके बछड़े-बछड़ी कसाईयोंको बेच, कुछ मास दिन-रात एक तंग स्थानमें-ऐसे तंग स्थानमें जहाँ बारीबारीसे एक गाय बैठ कर रह सकती है और अन्य गौओंको खड़े रहना पड़ता है, बॉध कर, फूंका दे दूध निकालते हैं।
और दूध कम होने पर, लाभ न होनेसे, दूध देते समय १३५) १५०) २००) तक खरीदी हुई गौ-भैंस, ३१), ४१) या ५१) रु० तक कसाइयोंको बेच डालते हैं। और दूसरी दूधकी गौ खरीद कर अपने दूधका कार-बार पूर्ववत् चलाते हैं। फिर उसकी भी ऊपर लिखे अनुसार दुर्गति करते हैं। जिस माँति कलकत्तेमें दूधके कारबारी गाय-भैसोंके साथ उनके बच्चोंका भी नाश कर रहे हैं उसी प्रकार बम्बई में भी दूधके पश्चात् यह उपयोगी पशु नाश हो रहे हैं । भारतके अन्य नगरों में भी इसी प्रकार दूधके कारबारियों द्वारा गो-वंशका नाश हो रहा है । जो हो, अगर अपना और अपनी वर्तमान सन्तानोंके साथ साथ देशका भी मंगल चाहते हो तो पूर्व कालानुसार, गोचर-भूमि छोड़नेके निमित्त भारत-सरकार, राजा 'महाराजाओं और जमींदार-तालुकेदारोंसे प्रार्थना करो और जब तक गोचर-भूमि छूटे लगातार इसकी चेष्टा करते रहो।"
वर्माजीके उक्त कथनसे ऐसा कौन निर्दय होगा जिसके मन में एक बार दयाका संचार न हो उठे ! जो नगर-निवासी इस भैाति
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