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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारतमें दुर्भिक्ष । हिन्दू लोग गौको पवित्र एवं पूजनीय पशु मानते हैं । हम उसे " गौ माता " कहते हैं। पंचगव्यके ( गोवर, गोमूत्र, गोदुग्ध, गोदधि और गोघृत) पान द्वारा हमारे शास्त्रकारोंने बड़े से बड़े पापों की भी शुद्धि कही है, जिसे समय समय पर हम लोग पान कर 'अपनी आत्मा को पवित्र करते हैं । किंतु खेद कि जिसे हम माता कहते हैं उसका माताके जैसा सम्मान कभी स्वप्न में भी नहीं करते । अपनी माताके दुःख निवारणार्थ कोई उपाय नहीं सोचते । हम उसे अपवित्र स्थान में रखते हैं, अपवित्र भोजन देते हैं—मैला पानी पिलाते हैं - भरपेट आहार नहीं देते ! ज्यों ही दूध देने से ठहरी अथवा दुबली पतली या कमजोर हुई कि प्रसन्नता से बधिकके हाथ अल्प मूल्य पर बेच डालते हैं । 2 बड़े शहरों में गौओं की बड़ी ही दुर्गति है । हम कलकत्ते नगरकी गौओं का वर्णन पाठकों के आगे रखते हैं । श्री० हासानन्दजी वर्माने २४ - १२ - १९१८ को एक लेख समाचार पत्रों में छपाया है, वे लिखते हैं कि " कसाई लोग भी अपने घरकी दूधकी गौओंके नीचे, दूध पीते बछड़े - बछड़ी को जुदा करक नहीं मारते । कलकत्ते में बंगाली हिन्दू ग्वाले, हिन्दुओं की जमींदारीमें बस कर, हिन्दू ब्राह्मणों को दूध बेव वच पिलाते हैं और छोटे छोटे दुबमुंहे बछड़े -बछड़ी सबके सामने एक, दो, तीन रुपये तक कसाइयों को प्रति दिन वेचते हैं, जिसकी संख्या कलकते के एक म्युनिसिपालिटी के कसाईखाने की प्रति वर्षकी रिपोर्ट में १०००० एवं ११००० छपती है। बंगालकी अच्छी अच्छी गौ-जाति भी प्रायःकलकते में आआ कर नत्र हो गई । अब बंगा में ४-६ सेर दूधको गौ खोजने पर भी कठिनता से मिलता For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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