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पशु-धन
गोचर-भूमिका प्रबन्ध जमींदारोंकी सहायतासे हो सकता है। भारतमें जो गोचर-भूमि थी वह खेतीके काममें ले ली गई है,अत एव सरकारसे भी इस विषय में सहायता मांगनी चाहिए।
पशुओंके भिन्न भिन्न रोगोंके निदान और चिकित्सा-सम्बन्धी पुस्तकें प्रकाशित होनी चाहिए । भिन्न भिन्न प्रान्तोंकी सरकारें इस कार्यको कर भी रही हैं । प्रत्येक गो-पालन करनेवालेको गौका भरण-पोषण-सम्बन्धी कार्य स्वयं देखना चाहिए । नौकरोंके रहते हुए भी सब कार्योको अपनी दृष्टि से देखना आवश्यक है। ___ भारतके प्रधान प्रधान नगरोंमें कुछ-न-कुछ अच्छी नस्लकी गायें
और बछड़े नित्य ही मारे जाते हैं । अब ऐसा समय आया है कि बिना विचारे गौओंके वध किये जानेकी प्रथाको रोकनेके लिये कानून बनना चाहिए। जो लोग कसाईके हाथ अपनी गौएँ बेच डालते हैं उनमें सदुपदेश द्वारा कुछ धार्मिक प्रवृत्ति भी उत्पन्न करनी चाहिए । बंगालमें जिस प्रकार हबड़ेकी पशु-रक्षिणीशाला है उसी प्रकारकी अनेक संस्थाएँ बननी चाहिए, जहँ। कि नाम मात्रका शुल्क ले कर गौओंकी रक्षा को जाय । ऐसा होने पर गो-पालन करनेवाले अधिक नफा उठानेके लिये अपनी गौओंको बधिकके हाथ न बेचेंगे । प्यारे धार्मिक भारतीयो ! उठो इस कामको अपने हाथमें लो और अब अधिक वेपरवाही इस विषयमें न दिखाओ।
आजकल की स्थिति को देख कर यही समुचित मालूम देता है कि “डेरी" को प्रणाली पर गो-पालनका कार्य किया जाय और धीरे धीरे उसका उद्देश और भी अवित विस्तृत कर लिया जाय। और उसमें कृषि-कार्य भो आरभ कर दिया जाय, जिससे कि देशी सदाके लिये स्थायो हो जाय ।
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