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भारत दुर्भिक्ष ।
उचित और यथेष्ट चारेकी कमी के कारण गौओकी शारीरिक अवस्था ठीक नहीं रहती । इनके अतिरिक्त रोगोंके कारण गौओं की मृत्यु और अन्य विधियोंके द्वारा गोवंशका बढ़ता हुआ क्षय भी एक तीसरा कारण है । उत्तम साडों और गोचर भूमिका प्रबंध लोगोंकी पारस्परिक सहयोगिता और सहायतासे तथा सरकार और म्युनिसिपाल्टियों या जिला बोर्ड के ध्यान देनेसे हो सकता है।
गौके दूधका परिमाण, उसकी स्वास्थ्यवर्द्धक तथा दूध पैदा करने की शक्ति यह सब उत्तम साडों पर निर्भर है। दुर्भाग्यवश सड अब न तो यथेष्ट संख्या में ही मिलते हैं और न वे सर्वथा सब प्रकारसे योग्य ही होते हैं । उदाहरणार्थ हबड़ा जिलेमें १५०० गौओंके बीच में एक साँड है । यह बड़े आश्चर्यका विषय है कि
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star तो इतना अभाव और हम गोवंशको उन्नत देखना चाहें ! प्रत्येक गाँव के निवासियोंको चाहिए कि वे ५० गौओंके बीच एक उत्तम साँड रखें । हमारे यहाँ शास्त्रों में इस अभावको दूर करने के लिये " वृषोत्सर्ग " नामक एक कर्मका विधान है, जिसमें मृतक के नाम पर चक्र- त्रिशूलादि चिन्होंसे अंकित कर बैल स्वतन्त्र छोड़ दिये जाते हैं । किन्तु खेद है कि हमारे धार्मिक कृत्यों में भी इस दरिद्रताने शिथिलता उत्पन्न कर दी, तभी तो हमारी यह अधोगति है । कभी 1 कभी ऐसी भी आवश्यकता पड़ेगी कि अधिक दूध देनेवाली और अच्छी गो सन्तान उत्पन्न करनेके लिये, कम दूधवाली मामूली गायके साथ अन्य स्थानका उत्तम साँड बुला कर समागम कराना पड़ेगा । यदि ऐसा किया जाय तो बड़ी होशियारीके साथ कार्य करने की आवश्यकता है। बड़े बड़े शहरों और गाँवोंमें म्यूनीसिपाल्टियों और ज़िला बोर्डे को उत्तम साडोंका प्रबन्ध करना चाहिए।
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