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पशु-धन ।
रहता । क्योंकि ६ या ७ महीने तक गौकी गर्भावस्था में उसका भरण-पोषण करनेसे लगभग ५०) रु० खर्च होंगे और जिस समय बच्चा होने के बाद वह पाँच सेर दूध नित्य देगी उस समय वह दूने मूल्यको बिकेगी।
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अनादिकाल से भारत दुधार गौओं और दूधकी बहुलता के लिये प्रसिद्ध होता आया है । आज भी भारत में गौओंकी संख्या जितनी अधिक है, उतनी कहीं नहीं है; किन्तु साथ ही यहाँ की जन संख्या भी अधिक है । खेद है कि भारतीय गौएँ भारतीय प्रजा-जनोंके सदृश भी स्वास्थ्य में उतनी अच्छी नहीं रहीं, जितनी कि पहले हुआ करती थीं, और न वे पहले सरीखा दूध हो देती हैं। मूर्खतामें फँस कर गौओंके प्रति निर्दयताका व्यवहार करके ही हमने इस प्रकाकी स्थिति पैदा कर दी है । परन्तु अब इस बातकी आवश्यकता है। कि हम सावधान होकर अपनी की हुई भूलको सुधारें ।
अब हमें यह विचार करना चाहिए कि दूधके इतने कम परिमाण में और असन्तोष जनक रीति पर मिलनेका कारण क्या है ? इस असन्तोषप्रद स्थितिको दूर करने का हम क्या उपाय कर सकते हैं ? स्वीजरलैण्ड जैसा छोटा प्रदेश भी अपने यहाँ के जमे दूधके डब्बों से संसारके बाजारों को पाट सकता है और भारत जैसा सुविस्तृत देश अपनी आवश्यकता के लिये भी दूध नहीं पैदा कर सकता तो हमारा हृदय बेतरह दुखी होता है ।
दूध के कम मिलने के प्रधानतया दो कारण हैं । एक तो गौओंकी संख्या में कमी और दूसरे उनके दूध पैदा करनेको सामर्थ्यका हास | ये बातें क्यों पैदा होती हैं। इस लिये कि एक तो अच्छे साँड नहीं मिलते और दूसरे गोचर भूमिका अभाव तथा खाने योग्य
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