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भारतमें दुर्भिक्ष ।
दलाली आदिका खर्च नहीं लगाया है। परन्तु यह खर्च जान-बूझ कर आमदनी और खर्चके लेखेमेंसे निकाल दिया गया है, क्योंकि यह खर्चा केवल उप्ती समय देना होगा जब कि डेरीको प्रणाली पर गो-रक्षणका व्यापार चलाया जाय । इस जगह हमें तो सामान्य रीति पर गो-पालनके व्यवसायका क्रम दिखाना है। इस प्रकारके व्यवसायमें गौएँ गो-पालन करनेवालोंके घरमें ही रहेंगी। गोशालामें उन्हें रखने की जरूरत ही नहीं है । उन गौओंकी देख-रेखका काम भी गौओंके मालिकहीको करना पड़ेगा और गौओंका दूध वह अपने घर पर ही बेचेगा। हाँ उसे हिन्दुस्थानी तरीकेकी पशुचिकित्साका कुछ ज्ञान रखना होगा, इससे गौओंके रोगोंका और उनसे होनेवाली मौतोंकी आशंका बहुत कम रह जायगी। दूधकी दुहाईका जो खर्च होगा, वह गोबरकी खाद या कण्डे बेच कर पैदा किया जा सकेगा। __ बच्चा होने पर आठ महीने तक गौका दूध उसी परिमाणमें होता रहेगा। इसके बाद धीरे धीरे कुछ कम होता जायगा । साल या डेढ़ सालके अनन्तर दूध बिलकुल बन्द हो जायगा। परन्तु इस समय गऊको ३ या ४ मासका गर्भ भी होगा और ६ या ७ महीनेके अनन्तर उसको बच्चा भी होगा। बस इन्हीं ६ या ७ महीनों तक गौकी रक्षा और भरण-पोषणके लिये कठिनता होती है, तथा इसी अवस्थामें यह देखने में आता है कि गौ या तो बधिकके हाथ बेच दी जाती है अथवा लापर्वाहीसे तथा उसे भूखे रखनेसे उसके प्राण चले जाते हैं। झूठमूठकी किफायत और आवश्यकतासे अधिक लालच ही इस बुराईका परिणाम है । यदि दूधसे हटी हुई गौका उसके गर्भवती रहनेकी अवस्थामें भली भैाति भरण-पोषण किया जाय तो अन्तमें उस सबका बदला मिल जाता है और टोटा नहीं
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