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उद्योग-धन्धे ।
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जाँच करनेका घोर विरोध करते हुए कहते हैं कि यह गाड़ीके गले में पाँचवा पहिया बाँध देना है। इससे कुछ भी लाभ नहीं। इसके स्थान पर आदर्श कारखाने या खोज करनेवाली संस्थाएँ स्थापित की जानी चाहिए। साथ ही आपकी राय है कि इम्पीरियल औद्योगिक बोर्डकी रचना ऊट-पटांग है। उसकी जगह सिर्फ एक ही परामर्शदाता बोर्ड स्थापित किया जाय, जिसके अधिकांश सदस्थ व्यवस्थापक कौंसिलके गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा ही चुने जायँ । इससे दो लाख रुपये वार्षिककी बचत होगी । साथ ही बोर्डको भारत-सरकारका पुञ्छल्ला बना कर छोड़ देना भी एक महज लचर बात है । अन्तमें आपका कहना है कि भारतीय ग्रेज्यूएटों को ही डिपार्टमेंण्टमें पद मिलने चाहिए । १५ लाखक मकानात और तीस लाख एकबारगी तथा ६ लाख रुपया वार्षिक कला-कौशल आदिकी शिक्षाके लिये यदि खर्च किये जायें तो भारत का दरिद्रता और दुर्भिक्षसे शीघ्र हो छुटकारा हो सकता है ।
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