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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२ भारतमें दुर्भिक्ष । 1 होते जाने में ब्रिटिश सरकारकी पॉलिसी ही मुख्य कारण है, जो कि लगातार भारतको कच्चे माल भेजने के लिये लाचार करती आई है। १८५८ ई० से भारत सरकार ब्रिटिश कारखानोंके फायदे के लिये ही भारतीय रुई की पैदावार तथा उत्तमता बढ़ाती चली आई है । किन्तु भारतवर्ष अच्छे किस्मकी रुई भले ही पैदा करे, पर वह दोनोंके लिये ( इंग्लैण्ड और भारतके ) काममें आनी चाहिए । सरकार अब रुका माल यहाँ ही बनवानेकी पॉलिसी अख्यार करे | मालवीयजीका कहना है कि उद्योग-धन्धोंकी शिक्षा के सम्बन्ध में मिलनेवाली छात्रवृत्तियाँ बहुत ही कम हैं। भारत सरकार की पॉलिसीका इतिहास इस बात से भरा पड़ा है कि उसने औद्योगिक उन्नतिको तर्फ बहुत ही कम पैर बढ़ाया है । बड़े मार्मिक शब्दोंमें मालवीयजीका कहना है कि मैं बतला देना चाहता हूँ कि गत डेढ़ शताब्दी में भारतवर्षने इंग्लैण्डको समृद्धिके लिये क्या क्या दिया है, और अनुदार पॉलि - सीके कारण उसने क्या क्या कष्ट सहे हैं । यहाँ तक कि सब प्रकारकी प्राकृतिक पैदावार रखते हुए भी आज वह संसार में सबसे अधिक गरीब देश है । मैं जापानी ढंगकी कृषि, उद्योगधन्धों तथा साधारण प्रकारकी शिक्षाके प्रचार पर जोर देता हूँ । यह अफसोस की बात है कि इंग्लैण्डको तो प्राथमिक शिक्षाकी आवश्यकता है, पर भारतवर्ष उससे वंचित रखा जाता है । यदि भारतीय उद्योग-धन्धोंकी उन्नति होनी बदी है तो भारतीयोंको संसारकी स्पर्द्धा के लिये तैय्यार हो जाना चाहिए । इसके लिये ऊँची शिक्षाके औद्योगिक विद्यालय तो खुलें ही, पर साथ ही विदेशों में भी भारतीय विद्यार्थी भेजे जायँ । मालवीयजीकी राय है कि आयातनिर्यातकी बहुतायत के कारण यह अत्यन्त आवश्यक है कि सरकार भारतीय जहाज बनवाये । आप औद्योगिक विशेषज्ञोंके घूम-घूम कर | For Private And Personal Use Only
SR No.020121
Book TitleBharat me Durbhiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshdatta Sharma
PublisherGandhi Hindi Pustak Bhandar
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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