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बेटेको रोटा-नमक पर ही सन्तोष करना पड़ता है । इसे अवश्य रोकना पड़ेगा। कानून बनाना पड़ेगा कि जिसमें कोई भी किसान पन्द्रह बीघे जमीनसे कम नहीं रख सकेगा। भाई-बन्धु जायदाद बॉटनेके समय इसे बॉट न सकेंगे। इसका नतीजा यह होगा कि वह किसान फिर अपना पूरा समय कृषि-कार्य में लगा सकेगा, इसकी आमदनीसे अपने परिवारको पाल सकेगा। खाद डाल कर, आ खोद कर, नये औजार लाकर खेतीकी तरक्की भी कर सकेगा।
और बाकी आदमी जिन्हें खेतीकी जमीन नहीं मिलेगी, लाचार होकर, गावके बाहर शहरों में, मिलों, पुतलीघरोंमें जाकर काम करेंगे, अपनी और अपने परिवारकी आमदनी बढ़ावेंगे । घरकी आधी रोटीको लात मार कर, बाहरकी समूची रोटीके लिये जान लड़ावेंगे। इससे उद्योग-धन्दोंको भी सहायता पहुँचेगी, मालिकोंको मजदूरोंकी कमीके लिये रोना न पड़ेगा। पर हा, उन्हें मजदूरोंके रहने, खानपीने, स्वास्थ्य इत्यादिका यथोचित प्रबन्ध करना पड़ेगा और सरकारको भी शहरोंको मजदूरोंके रहने लायक बनाना पड़ेगा। इस तरह देशके लोगोंकी आमदनी बढ़ेगी, फिर क्या है, खुले बाजारमें हम हिन्दुस्थानी भी; उतना ही दाम देकर गेहूँ ले सकेंगे जितना कि योरोपियन देनेको तैय्यार हैं । फिर तब गेहूँको बाहर जानेकी जरूरत न पड़ेगी। हमें अन्न-कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा । जरूरत होगी तो दूसरे देशोंसे भी अन्न मँगा लेंगे। सबसे अधिक जरूरत है आम. दनी बढ़ानेकी । कह। हमारी आमदनी ४२) रु० और कहा योरपमें गरीबसे गरीब देशकी ३३०) रु०? कैसी लाञ्छनाकी बात है।
यही तो हमारी रोटीका सवाल है । इसको किस तरह हल करना होगा इसे श्रीमान् पंगणेशदत्तजी शर्माके लिखे भारतमें दुर्भिक्ष"
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