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भारतके प्राचीन राजवंश
दामजदश्री (द्वितीय)। [ श० सं० १५४, १५५ ( ई. स. २३२, २३३=वि० सं० २८९, २९० )।
यह रुद्रसेन प्रथमका पुत्र था।
इसके सिक्कोंसे पता चलता है कि यह अपने चचा महाक्षत्रप दामसेनके समय श० सं० १५४ और १५५ में क्षत्रप था ।
इसके क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं । इन पर एक तरफ़ " राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनपुत्रस राज्ञः क्षत्रपस दामजदश्रियः " और दूसरी तरफ़ श० सं० १५४ या १५५ लिखा होता है ।।
ये सिक्के भी दो प्रकारके होते हैं । एक प्रकारके सिक्कों पर चन्द्रमा और तारामण्डल क्रमशः चैत्यके बाएँ और दाएँ होते हैं और दूसरी तरहके सिक्कों पर क्रमशः दाएँ और बाएँ ।
वीरदामा । [ श० सं० १५६-१६० ( ई० स० २३४-२३८-वि० सं०२९१-२९५)]
यह दामसेनका पुत्र था ।
इसके क्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं। इन पर उलटी तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस दामसेनस पुत्रस राज्ञः क्षत्रपस वीरदाम्नः "
और सीधी तरफ श० सं० १५६ से १६० तकका कोई एक संवत् लिखा रहता है। इसके पुत्रका नाम रुद्रसेन (द्वितीय ) था।
ईश्वरदत्त । [श० सं० १५८ से १६१ ( ई० स० २३६ से २३९= वि० सं० २९३ से
२९६) के मध्य ।] इसके नामसे और इसके सिक्कमें दिये हुए राज्य-वर्षोंसे अनुमान होता है कि यह पूर्वोल्लिखित चष्टनके वंशजों से नहीं था । इसका नाम
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