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क्षत्रप-वंश।
इसके केवल चाँदीके महाक्षत्रप उपाधिवाले सिक्के ही मिले हैं । इन पर एक तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहस पुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस्य संघदाम्ना" और दूसरी तरफ श० सं० १४४ या १४५ लिखा होता है। ___ श० सं० १४४ में इसका बड़ा भाई रुद्रसेन प्रथम और श० सं० १४५ में इसका उत्तराधिकारी दामसेन महाक्षत्रप था । अतः इसका गज्य इन दोनों वर्षों के मध्यमें ही होना सम्भव है ।
दामसेन । [श• सं० १४५--१५८ (ई० स० २२३-२३६=वि० सं० २८०-२९३)]
यह रुद्रसिंह प्रथमका पुत्र था । इसके चाँदी और मिश्रधातुके सिक्के मिलते हैं। चादीके सिक्कों पर उलटी तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसीहस पुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस दामसेनस" और सीधी तरफ श० सं० १४५ से १५८ तक का कोई एक संवत् लिखा रहता है । इससे प्रकट होता है कि इसने श० सं० १५८ के करीब तक ही राज्य किया था। क्योंकि इसके बाद श० सं० १५८
और १६१ के बीच ईश्वरदत्त महाक्षत्रप हो गया था। इस ईश्वरदत्तके सिक्कों पर शक-संवत् नहीं लिखा होता । केवल उसका राज्य-वर्ष ही लिखा रहता है। __ श० सं० १५१ के दामसेनके चाँदीके सिक्कों पर भी ( रुद्रसिंह प्रथमके क्षत्रप उपाधिवाले श० सं० ११० के चाँदीके सिक्कोंकी तरह) चैत्यकी बाई तरफवाला चन्द्रमा दाई तरफ और दाई तरफका तारामण्डल बाई तरफ होता है। __इसके मित्रधातुके सिक्कों पर नाम नहीं होता। केवल संवत्से ही जाना जाता है कि ये सिक्के भी इसीके समयके हैं।
इसके चार पुत्र थे । वीरदामा, यशोदामा, विजयसेन और दामजदश्री (तृतीय)।
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