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भारतके प्राचीन राजवंश
सिंह भी इससे आ मिला | आगे बढ़ने पर चौहानों और सोलंकियों के बीच युद्ध हुआ । इस युद्ध में कुमारपालने लोहके तीरसे अन्नको आहतकर हाथी परसे नीचे गिरा दिया और उसके हाथी घोड़े छीन लिये । इस पर अन्नने अपनी बहन जल्हणाका विवाह कुमारपाल से कर आप - समें मैत्री कर ली । ”
इस युद्ध में पूर्वोक्त परमार विक्रमसिंह अर्णोराजसे मिल गया था, इस लिये उसे कैदकर चन्द्रावतीका राज्य कुमारपालने उसके भतीजे यशोधवलको दे दिया था ।
कीर्तिकौमुदी में इस युद्धका सिद्धराज जयसिंह के समय होना लिखा है । यह ठीक नहीं है ।
यद्यपि उपर्युक्त ग्रन्थोंमें इस युद्धका वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण है, तथापि इतना तो स्पष्ट ही है कि इस युद्ध में कुमारपालकी विजय हुई थी ।
वि० सं० १२०७ ( ई० स० ११५० ) का एक लेख चित्तौड़ के किलेमॅके समिद्धेश्वर के मन्दिरमें लगा है। उसमें लिखा है कि शाकम्भरी के राजाको जीत और सपादलक्ष देशको मर्दन कर जब कुमारपाल शालिपुरगाँव में पहुँचा तब अपनी सेनाको वहीं छोड़ वह स्वयं चित्रकूट ( चित्तौड़ ) की शोभा देखनेको यहाँ आया । यह लेख उसीका खुदवाया हुआ है ।
वि० सं० १२०७ और १२०८ ( ई० स० ११५० और ११५१ ) के बीच यह अपने बड़े पुत्र जगदेव के हाथसे मारा गया ।
२६ - जगदेव ।
यह अर्णोराजका बड़ा पुत्र था और उसको मारकर राज्यका स्वामी हुआ ।
यद्यपि पृथ्वीराजविजयमें और बीजोल्याके लेख में जगदेवका नाम नहीं लिखा है, तथापि पृथ्वीराज - विजयसे प्रकट होता है कि, “सुध
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