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चौहान वंश |
बहुत क्रोध चढ़ आया और चौहान राजा आनाक से स्वयं भिड़ जाने के लिये उसने अपने महावतको आज्ञा दी कि मेरे हाथीको आनाक के हाथी के निकट ले चल । इस प्रकार जब कुमारपालका हाथी निकट पहुँचा तब उसे मारने के लिये आहड़ स्वयं अपने हाथी परसे उसके हाथी पर कूदने के लिये उछला । परन्तु महावतके हाथीको पीछे की तरफ हटा लेने के कारण बीचहीमें पृथ्वीपर गिर पड़ा और तत्काल वहीं पर मारा गया । अन्तमें आनाक भी कुमारपालके बाणसे घायल हो गया और विजय कुमारपालने उसके हाथी घोड़े छीन लिये ।
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जिनमण्डनरचित कुमारपाल - प्रबन्धमें लिखा है: - " शाकम्भरीका अणोराज अपनी स्त्री देवलदेवी के साथ चौपड़ खेलते समय उसका उपहास किया करता था । इससे क्रुद्ध होकर एक दिन उसने इसे अपने भाई कुमारपालका भय दिखलाया। इस पर अर्णोराजने उसे लात मारकर वहाँसे निकाल दिया । तत्र देवलदेवी अपने भाई कुमारपाल के पास चली गई और उसने उससे सब हाल कह सुनाया । इस पर क्रोधित हो कुमारपालने इसपर चढ़ाई की। उस समय अर्णोराजने आरभट ( यह वही आहड़ था जो कुमारपालको छोड़ कर इसके पास आ रहा था ) द्वारा रिश्वत देकर कुमारपालके सामन्तोंको अपनी तरफ मिला लिया । परन्तु युद्ध में कुमारपाल शीघ्रता से अपने हाथी परसे अर्णोराजके हाथी पर कूद पड़ा और उसे नीचे गिराकर उसकी छाती पर चढ़ बैठा । बाद में उसे तीन दिन तक लकड़ीके पिंजरे में बंद रखकर पीछा राज्य पर बिठला दिया ।
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हेमचन्द्र अपने व्याश्रय काव्यमें लिखा है:
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कुमारपाल के राज्याधिकारी होने पर उत्तरके राजा अन्ने उपर चढ़ाई की। यह खबर सुन कुमारपाल भी अपने सामन्तोंके साथ इस पर चढ़ दौड़ा। मार्ग में आबूके पास चन्द्रावतीका परमार राजा विक्रम
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