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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'भारतके प्राचीन राजवंश बनवाकर उसपर सुवर्णका कलश चढ़वाया और उसके निर्वाहार्थ ४ गाँव दान दिये । इसकी वीरताके विषयमें हम्मीर-महाकाव्यमें लिखा है कि, इसकी युद्धयात्राके समय कर्णाट, लाट (माही और नर्मदाके बीचका प्रदेश), चोल (मद्रास), गुजरात और अङ्ग (पश्चिमी बंगाल) के राजा तक घबरा जाते थे। इसने अनेक बार मुसलमानोंसे युद्ध किया था। एक बार इसने हातिम नामक मुसलमान सेनापतिको मारकर उसके हाथी छीन लिये थे। प्रबन्धकोशकी वंशावलीसे पता चलता है कि इसने अजमेरसे २५ मील दूर जेठाणक स्थानपर मुसलमान सेनापति हाजीउद्दीनको हराया था। इसने नासिरुद्दीनको हराकर उसके १२०० घोड़े छीन लिये थे। यह नासिरुद्दीन सम्भवतः सुबक्तगीनकी उपाधि थी। वि० सं० १०२० ( ई० स० ९६३) के पूर्वतक इसने कई बार भारत पर चढ़ाइयाँ की थीं। इसके तीन पुत्र थे-विग्रहराज, दुर्लभराज, और गोविन्दराज । १५-विग्रहराज (द्वितीय )। यह सिंहराजका बड़ा पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसने अपने पिताके राज्यको दृढ कर उसकी वृद्धि की। फोर्ब्स साहबकृत रासमालासे प्रकट होता है कि इसने गुजरात ( अणहिलपाटण) के राजा मूलराज पर चढ़ाई कर उसे कंथकोट (कच्छ) के किलेकी तरफ भगा दिया और अन्तमें उससे अपनी अधीनता स्वीकार करवाई । यद्यपि गुजरातके राजाकी हार होनेके कारण गुजरातके कवि इस विषयमें मौन हैं, तथापि मेरुतुङ्गरचित प्रबन्धचिन्तामणिमें इसका विस्तृत विवरण मिलता है। (१) हम्मीर-महाकाव्य, सर्ग १ । For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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