________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सेन वंश ।
१७०२ विक्रम संवत् १८३७ में अनन्त पण्डितने यह टीका बनाई थी । उस समय, शायद, वह सेनवंशी राजाओंके इतिहास से अनभिज्ञ रहा होगा। नहीं तो गोवर्धन के आश्रयदाता बल्लालसेन के स्थान पर वह प्रवरसेनका नाम कभी न लिखता ।
जयदेव |
यह गीतगोविन्दका कर्ता था । इसके पिताका नाम भोजदेव और माताका वामा (रामा) देवी था । इसकी स्त्रीका नाम पद्मावती था । यह बङ्गाल के केन्दुबिल्व ( केन्दुली ) नामक गाँव का रहनेवाला था । वह गाँव उस समय वीरभूमि जिलेमें था ।
इस कविकी कविता बहुत ही मधुर होती थी । स्वयं कविने अपने मुँह से अपनी कविताकी प्रशंसा में लिखा है
शृणुत साधु मधुरं विबुधा विबुधालयतोपि दुरापम् । अर्थात् हे पण्डितो ! स्वर्गमें भी दुर्लभ, ऐसी अच्छी और मीठी मेरी कविता सुनो। इसका यह कथन वास्तवमें ठीक है ।
हलायुध ।
यह वत्सगोत्रके धनञ्जय नामक ब्राह्मणका पुत्र था । बल्लालसेन के समय क्रमसे राजपण्डित, मन्त्री और धर्माधिकारी के पदों पर यह रहा था । इसके बनाये हुए ये ग्रन्थ मिलते हैं । - ब्राह्मणसर्वस्व, पण्डितसर्वस्व, मीमांससर्वस्व, वैष्णव सर्वस्व, शैवसर्वस्व, द्विजानयन आदि। इन सबमें ब्राह्मणसर्वस्व मुख्य है । इसके दो भाई और थे । उनमेंसे बड़े भाई पशुपतिने पशुपति-पद्धति नामका श्राद्धविषयक ग्रन्थ बनाया और दूसरे भाई ईशानने आह्निकपद्धति नामक पुस्तक लिखी ।
श्रीधरदास ।
यह लक्ष्मणसेन के प्रीतिपात्र सामन्त बटुदासका पुत्र था । यह स्वयं भी लक्ष्मणसेनका माण्डलिक था। इसने शक संवत् ११२७ ( लक्ष्मण
२१९
For Private and Personal Use Only