________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतके प्राचीन राजवंश
काव्यमालामें छपी हुई आर्या-सप्तशतीके पहले पृष्ठके नोट नं. १ में एक श्लोक है
गोवर्धनश्च शरणो जयदेव उमापतिः ।
कविराजश्व रत्नानि समिती लक्ष्मणस्य च ॥ इससे भी प्रतीत होता है कि उमापति लक्ष्मणकी समामें विद्यमान था। परन्तु लक्ष्मणसेनके दादा विजयसेनने एक शिवमन्दिर बनवाया था । उसकी प्रशस्तिका कर्ता यही उमापतिधर था। इससे जाना जाता है कि यह कवि विजयसेनके राज्यसे लेकर बल्लालसेनके कुमारपद तक जीवित रहा होगा । तथा, 'लक्ष्मणसेन जन्मते ही राज्यसिंहासन पर बिठलाया गया था, इस जनश्रुतिके आधार पर ही इस कविका उसके राज्य-समयमें भी विद्यमान होना लिख दिया गया हो तो आश्चर्य नहीं। ___ इस कविका कोई ग्रन्थ इस समय नहीं मिलता। केवल इसके रचे हुए कुछ श्लोक वैष्णवतोषणी और पयावलि आदिमें मिलते हैं।
शरण। इसका नाम भी गीतगोविन्दके पूर्वोदाहृत श्लोकमें मिलता है। कहते हैं, यह भी लक्ष्मणसेनकी सभाका कवि था। सम्भवतः बल्लालसेन चरित्र (बल्लालचरित) का कर्त्ता शरणदत्त और यह शरण एक ही होगा। यह बल्लालसेनके समयमें भी रहा हो तो आश्चर्य नहीं।
गोवर्धन । __ आचार्य गोवर्धन, नीलाम्बरका पुत्र, लक्ष्मणसेनका समकालीन था । इसने ७०० आर्या-छन्दोंका आर्यांसप्तशति नामक ग्रन्थ बनाया । इसने उसमें सेनवंशके राजाकी प्रशंसा की है। परन्तु उसका नाम नहीं दिया। उसीमें इसने अपने पिताका नाम नीलाम्बर लिखा है।
इस ग्रन्थकी टीकामें लिखा है कि 'सेनकुलतिलकभूपति' से सेतु-काव्यके रचयिता प्रवरसेनका तात्पर्य है। परन्तु यह ठीक नहीं है ! शक-संवत्
For Private and Personal Use Only