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सेन-वंश।
राजाका ख़जाना आदि लूटना प्रारम्भ किया। बख्तियारने देश पर कब्जा कर लिया और नदियाको नष्ट करके लखनौतीको अपनी राजधानी बनाया। उसके आसपासके प्रदेशों पर भी अधिकार करके उसने अपने नामका खुतबा पढ़वाया और सिक्का चलाया । यहाँकी लूटका बहुत बड़ा भाग उसने सुलतान कुतबुद्दीनको भेज दियो ।
इस घटनासे प्रतीत होता है कि लक्ष्मणसेनके अधिकारी या तो बस्तियारसे मिल गये थे या बड़े ही कायर थे; क्योंकि भविष्यद्वाणीका भय दिखला कर बिना लड़े ही वे लोग लक्ष्मणसेनके राज्यको बख्तियारके हाथमें सौंपना चाहते थे । परन्तु जब राजा उनके उक्त कथनसे न घबराया तब बहुतसे तो उसी समय उसे छोड़ कर चले गये । तथा, जो रहे उन्होंने भी समय पर कुछ न किया । यदि यह अनुमान ठीक न हो तो इस बातका समझना कठिन है कि केवल ८० सवारों सहित आये हुए बख्तियारसे भी उन्होंने जमकर लोहा क्यों न लिया। ___ बख्तियार लक्ष्मणके समग्र राज्यको न ले सका। वह केवल लखनौतीके आसपासके कुछ प्रदेशों पर ही अधिकार कर पाया। क्योंकि इस घटनाके ६० वर्ष बाद तक पूर्वी बङ्गाल पर लक्ष्मणके वंशजोंका ही अधिकार था। यह बात तबकाते नासिरीसे मालूम होती है ।
उक्त तवारीखमें मुसलमानोंके इस विजयका संवत् नहीं लिखा। तथापि उस पुस्तकसे यह घटना हिजरी सन् ५६३ (ई० स० ११९७ ) और हिजरी सन् ६०२ ( ई०स० १२०५ ) के बीचकी मालूम होती है। ___ हम पहले ही लिख चुके हैं कि लक्ष्मणसेनके जन्मसे उसके नामका संवत् चलाया गया था तथा ८० वर्षकी अवस्थामें वह बख्तियार द्वारा हराया गया था । इसलिये यह घटना ई०स० ११९९ में हुई होगी।
(8) J. Bm. A. S. 1896, p. 27 and Elliot's History of India, Vol. II, p. 307--9.
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