________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परमार वंशकी उत्पत्ति।
ले आया तब मुनिने प्रसन्न होकर उसकी जातिका नाम परमार और उसका नाम धौमराज रक्खा ।
आबूपरके अचलेश्वरके मन्दिरमें एक लंख लगा है । यह अभीतक छपा नहीं है। इसमें लिखा है:
तत्राथ मैत्रावरुणस्य जुव्हतश्चण्डेग्निकुंडात्पुरुषः पुराभवत् । ___मत्वा मुनीन्द्रः परमारणक्षमं स व्याहरत्तं परमारसंज्ञया ॥११॥ अर्थात्-यज्ञ करते हुए वसिष्ठके अग्निकुण्डसे एक पुरुष उत्पन्न हुआ। उसको पर अर्थात् शत्रुओंके मारनेमें समर्थ देखकर ऋषिने उसका नाम ‘परमार रख दिया।
उपर्युक्त वसिष्ठ और विश्वामित्रकी लड़ाईका वर्णन वाल्मीकि रामायणमें भी है । परन्तु उसमें अग्निकुण्डसे उत्पन्न होने के स्थानपर नन्दिनी गौद्वारा मनुष्योंका उत्पन्न होना और साथ ही उन मनुष्योंका शक-यवनमल्हव आणि जातियोंके म्लेच्छ होना भी लिखा है।
धनपालने १०७० के करीब तिलकमरी बनाई थी। उसमें भी इनकी उत्पत्ति अग्निकुण्डसे ही लिखी है।। परन्तु हलायुधने अपनी पिङ्गलसूत्रवृत्तिमें एक श्लोक उद्धृत किया है
" ब्रह्मक्षत्रकुलीनः प्रलीनसामन्तचक्रनुतचरणः ।
सकलसुकृतैकपुंजः श्रीमान्मुञ्जश्चिरं जयति ॥" इसमें 'ब्रह्मक्षत्रकुलीनः' इस पदका अर्थ विचारणीय है । शायद ब्राह्मण वसिष्ठको युद्धके क्षतों या प्रहारोंसे बचानेवाला वंश समझकर ही इस शब्दका प्रयोग किया गया हो । अनेक विद्वानोंका मत है कि ये लोग ब्राह्मण और क्षत्रिय वर्णकी मिश्रित सन्तान थे। अथवा ये विधर्मी थे और ब्राह्मणोंने संस्कार द्वारा शुद्ध करके इनको क्षत्रिय बना लिया। तथा इसी कारणसे इनको ‘ब्रह्मक्षत्रकुलीन: ' लिखकर, इनकी उत्पत्तिके लिये अग्निकुण्डकी कथा बनाई गई । रामायणमें भी नन्दिन से उत्पन्न
१७९
For Private and Personal Use Only