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भारतके प्राचीन राजवंश
अथाथर्वविदामाद्यस्समन्त्रामाहुतिं ददौ । विकसद्विकटज्वालाजटिले जातवेदसि ।। ६७ ।। ततः क्षणात्सकोदण्डः किरीटीकाञ्चनाइदः । उजगामाग्नितः कोऽपि सहेमकवचः पुमान् ॥ ६८ ॥
__परमार-वंश-वर्णनम् । परमार इतिप्रापत्स मुने म चार्थवत् ।
मीलितान्यनृपच्छत्रमातपत्रं च भूतले ॥ ७१ ॥ अर्थात्-विश्वामित्रने जिस समय आबृपहाड़पर वसिष्ठके आश्रमसे गाय चुरा ली, उस समय क्रुद्ध हुए वसिष्ठने अपने मन्त्रबलसे अग्निकुण्डमेंसे एक पुरुष उत्पन्न किया । इसने वसिष्ठके शत्रुओका नाश कर डाला । इससे प्रसन्न होकर वसिष्ठने इसका नाम परमार रक्खा । संस्कृतमें 'पर' शत्रुको और 'मार' मारनेवालेको कहते हैं । ___ इस वंशके लेखोंमें भी इनकी उत्पत्ति इसी प्रकारसे लिखी है । विक्रम संवत् १३४४ का एक लेख पाटनारायणके मन्दिरसे मिला है' । उसमें इस वंशकी उत्पत्तिके विषयमें निम्नलिखित श्लोक लिखे हैं:
जयतु निखिलतीर्थैः सेव्यमानः संमतात् । मुनिसुरसुरपत्नीसंयुतैरर्बुदाद्रिः ॥ विलसदनलगर्भादद्भुतं श्रीवशिष्ठः । कमपि सुभटमेकं सृष्टवान्यत्र मंत्रैः ॥ ३ ॥ आनीतधेन्वे परनिर्जयेन मुनिः स्वगोत्रं परमारजाति ।
तस्मै ददावुद्धतभूरिभाग्यं तं धौमराजं च चकार नाना ॥ ४ ॥ अर्थात्-आबूपर्वतपर वशिष्ठने अपने मन्त्रबल द्वारा अग्निकुण्डसे एक वीरको उत्पन्न किया । जब वह शत्रुओंको मारकर वशिष्ठकी गायको
(१) यह लेख हमने इण्डियन ऐण्टिक्वेरी ( Vol. XLV, Part DLXIX, May 1916) में छपवाया है ।
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