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वागडके परमार।
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ऐसा लिखा मिलता है कि इसने सिन्धुराजको परास्त किया था। यह सिन्धुराज कहाँका राजा था, यह पूरी तौरसे ज्ञात नहीं । या तो इससे सिन्धुदेशके राजासे तात्पर्य होगा या इसी नामवाले किसी दूसरे राजासे। यह भी लिखा है कि इसने कन्हके सेनापतिको मारा । यह कन्ह (कृष्ण) कहाँका राजा था, यह भी निश्चयपूर्वक ज्ञात नहीं। अपने पिताके नामसे चामुण्डराजने अथूणामें मण्डनेश्वरका मन्दिर बनवाया था। उसके साथ एक मठ भी था।
इसके समयके दो लेख अथूणामें मिले हैं। पहला वि० सं० ११३६ ( ई० स० १०७९) का और दूसरा वि० सं० ११५७ ( ई० स० ११००) का है। वि० सं० ११३६ के लेखमें' डम्बरसिंहको वैरिसिंहका छोटा भाई लिखा है तथा डम्बरसिंहसे चण्डप तककी वंशावली दी गई है।
७-विजयराज । यह चामुण्डराजका पुत्र था। उसीके पीछे यह गद्दीपर बैठा । इसके सान्धिविग्रहिक ( Minister of Peace and War ) का नाम वामन था। यह वामन बालभ-वंशी कायस्थ था। इसके पिताका नाम राज्यपाल था। वि० सं० ११६६ ( ई० स० ११०९) का, चामुण्डराजके समयका, एक लेख अथूणामें मिला है।
इन परमारोंकी राजधानी अभृणा ( उच्छृणक ) नगर था । यद्यपि परमारोंके समयमें यह नगर बहुत उन्नति पर था, तथापि इस समय वहाँ पर केवल एक गाँव मात्र आबाद है । पर उसके पास ही सैकड़ों भग्नावशेष मन्दिर और घर आदिकोंके खण्डहर खड़े हैं । अथूणाके पासके प्रदेशका प्राचीन शोध न होनेसे विजयराजके बादका इतिहास नहीं मिलता। (१) Ind. Ant., Vol. XXII. P. 80.
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