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भारतके प्राचीन राजवंश
समयमें नष्ट हो गया । उस समय गुजरातका राजा सिद्धराज जयसिंह बड़ा प्रतापी हुआ । उसीने मालवे पर अधिकार कर लिया । __प्रबन्धचिन्तामणिमें लिखा है कि एक बार जयसिंह और उसकी माता सोमेश्वरकी यात्राको गये हुए थे। इसी बीचमें यशोवर्माने उसके राज्य पर चढ़ाई की। उस समय जयसिंहके राज्यका प्रबन्ध उसके मन्त्री सान्तुके हाथमें था । उसने यशोवर्मासे वापिस लौट जाने की प्रार्थना की। इस पर यशोवर्माने कहा कि यदि तुम मुझे जयसिंहकी यात्राका पुण्य दे दो तो मैं वापिस चला जाऊँ। इस पर जल हाथमें लेकर सान्तने जयसिंहकी यात्राका पुण्य यशोवर्माको दे दिया। सिद्धराज जयसिंह यात्रासे लौटा तो पूर्वोक्त हाल सुन कर बहुत नाराज हुआ तथा सान्तुसे कहा कि तूने ऐसा क्यों किया । इस पर सान्तुने उत्तर दिया कि यदि मेरे देनेसे आपका पुण्य यशोवर्माको मिल गया हो तो आपका वह पुण्य मैं आपको लौटता हूँ और साथ ही अन्य महात्माओंका पुण्य भी देता हूँ। यह सुन कर जयसिंहका क्रोध शान्त हो गया । कुछ दिन बाद बदला लेनेके लिए जयसिंहने मालवे पर चढ़ाई की । बहुत कालतक युद्ध होता रहा । परन्तु धारा नगरीको वह अपने अधीन न कर सका । तब एक दिन युद्धमें क्रुद्ध होकर जयसिंहने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक धारा नगरी पर विजय प्राप्त न कर लूँगा तब तक भोजन न करूँगा। राजाकी इस प्रतिज्ञाको सुन कर उस दिन उसके अमात्यों और सैनिकोंने बड़ी ही वीरतासे युद्ध किया । उस दिन पाँच सौ परमार मारे गये तथापि सन्ध्या तक धारा पर दखल न हो सका । तब अनाजकी धारा नगरी बनाई गई । उसीको तोड़ कर राजाने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की । इसके बाद मुनाल नामक मन्त्रीकी सलाहसे जासूसों द्वारा गुप्त भेद प्राप्त करके हाथियोंसे जयसिंहने दक्षिणका फाटक तुड़वा डाला । उसी रास्ते किले पर हमला करके धाराको जीत लिया और यशोवर्माको छः रस्सियोंसे बाँध कर वह पाटण ले आया।
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