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मालवेके परमार।
उसे उसने अपनी रानीको सौंप दिया और उसका नाम मुञ्ज रक्खा । इसके बाद उसके सिन्धुल (सिंधुराज) नामक पुत्र हुआ।
राजाने मुञ्जको योग्य देख कर उसे अपने राज्यका मालिक बना दिया और उसके जन्मका सारा हाल सुना कर उससे कहा कि तेरी भक्तिसे प्रसन्न होकर ही मैंने तुझको राज्य दिया है । इसलिए अपने छोटे भाई सिन्धुलके साथ प्रीतिका बर्ताव रखना । परन्तु मुञ्जने राज्यासन पर बैठ कर अपनी आज्ञाके विरुद्ध चलनेके कारण सिन्धुलको राज्यसे निकाल दिया । तब सिन्धुल गुजरातके कासहृदस्थानमें जा रहा । जब कुछ समय बाद वह मालवेको लौटा तब मुञ्जने उसकी आँखें निकलवा कर उसे काठके पीजड़ेमें कैद कर दिया। उन्हीं दिनों सिन्धुलके भोज नामक पुत्र पैदा हुआ । उसकी जन्मपत्रिका देख कर ज्योतिषियोंने कहा कि यह ५५ वर्ष, ७ महीने, ३ दिन राज्य करेगा। ___ यह सुन कर मुञ्जने सोचा कि यह जीता रहेगा तो मेरा पुत्र राज्य न कर सकेगा । तब उसने भोजको मार डालनेकी आज्ञा दे दी। जब वधिक उसको वधस्थान पर ले गये तब उसने कहा कि यह श्लोक मुझको दे देनाः
मान्धाता स महीपतिः कृतयुगालङ्कारभूतो गतः सेतुर्येन महोदधौ विरचितः कासौ दशास्यान्तकः । अन्ये चापि युधिष्ठिरप्रभृतयो याता दिवं भूपते !
नैकेनापि समङ्गता वसुमती, मन्ये त्वया यास्यति ॥ अर्थात्-हे राजा ! सत्ययुगका वह सर्वश्रेष्ठ मान्धाता भी चला गया; समुद्र पर पुल बाँधनेवाले त्रेतायुगके वे रावणहन्ता भी कहाँके कहाँ गये; और द्वापरके युधिष्ठिर आदि और भी अनेक नृपति स्वर्गगामी हो गये । परन्तु पृथ्वी किसीके साथ नहीं गई । तथापि, मुझे ऐसा मालूम होता है कि अब कलियुगमें वह आपके साथ जरूर चली जायगी।
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