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भारतके प्राचीन राजवंश
इस श्लोकको पढ़ते ही मुझको बहुत पश्चात्ताप हुआ और भोजको पीछे बुला कर उसने उसे अपना युवराज बनाया ।
कुछ समय बाद तैलङ्ग देशके राजा तैलपने' मुखके राज्य पर चढ़ाई की । मुञ्जने उसका सामना किया | उसके प्रधान मन्त्री रुद्रादित्यने, समय बीमार था, राजाको गोदावरी पार करके आगे न बढ़की कसम दिलाई | परन्तु मुञ्जने पहले १६ दफे तैलप पर विजय प्राप्त किया था, इस कारण घमण्ड में आकर मुख गोदावरीसे आगे बढ़ गया । वहाँ पर तैलपने छल से विजय प्राप्त करके मुञ्जको कैद कर लिया और अपनी बहिन मृणालवतीको उसकी सेवामें नियत कर दिया ।
कुछ दिनों बाद मुख और मृणालवती आपसमें प्रेम के बन्धन में बँध गये । मुखके मन्त्रियोंने वहाँ पहुँच कर उसके रहने के स्थान तक सुरङ्गका मार्ग बना दिया | उसके बन जाने पर, एक दिन मुअने मृणाल"वती से कहा कि मैं इस सुरङ्गके मार्ग से निकलना चाहता हूँ । यदि तू भी मेरे साथ चले तो तुझको अपनी पटरानी बना कर मुझ पर किये गये तेरे इस उपकारका बदला हूँ । परन्तु मृणालवतीने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी मध्यमावस्था के कारण यह अपने नगरमें ले जाकर मेरा निरादर करने लगे । अतएव उसने मुझसे कहा कि मैं अपने आभू
णों का डिब्बा ले आऊँ, तबतक आप ठहरिए । ऐसा कहकर वह सीधी अपने भाई के पास पहुँची और उसने सब वृत्तान्त कह सुनाया । यह सुनकर तैलपने मुझको रस्सी से बँधवाकर उससे शहरमें घर घर भीख मँगवाई | फिर उसको वधस्थानमें भेजा और कहा कि अब अपने इष्टदेवकी याद कर लो । यह सुनकर मुञ्जने इतना ही उत्तर दिया कि :लक्ष्मीर्यास्यति गोविन्दे वीरश्रीवरवेश्मनि । गते मुझे यशःपुजे निरालम्बा सरस्वती ॥
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( १ ) इसकी माता युवराज दूसरेकी बहन थी ।
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