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मालवेके परमार।
पुत्रस्तस्य विभूषिताखिलधराभागो गुणैकास्पदं शौर्याक्रान्तसमस्तशत्रुविभवाधिन्याय्यवित्तोदयः । वक्तत्वोच्चकवित्वतर्ककलनप्रज्ञातशास्त्रागमः
श्रीमद्वाक्पतिराजदेव इति यः सद्भिः सदा कीर्त्यते ॥ १३ ॥ अर्थात्-हर्षका पुत्र बड़ा तेजस्वी हुआ, जो विद्वान् और कवि होनेसे वाक्पतिराज नामसे प्रसिद्ध हुआ।
परन्तु नागपुरके लेख में' इसी राजाका नाम मुझे लिखा हुआ है। निम्नलिखित श्लोक दोखिए:
तस्माद्वैरिवरूथिनीबहुविधप्रारब्धयुद्धाध्वरप्रध्वंसैकपिनाकपाणिरजनि श्रीमुजराजो नृपः। प्रायः प्रावृतवान्पिपालयिषया यस्य प्रतापानलो
लोकालोकमहामहीध्रवलयव्याजान्महीमण्डलम् ।। २३ ।। इसके ताम्रपत्र इत्यादिमें इसके उत्पलराज, अमोघवर्ष, पृथ्वीवल्लभ आदि और भी उपनाम मिलते हैं।
उदयपुर के पूर्वोक्त लेखसे पाया जाता है कि मुञ्जने कर्णाटे, लाट, केरल, और चोल देशोंको अपने अधीन किया; युवराजको जीत कर उसके सेनापतियोंको मारा; और त्रिपुरी पर तलवार उठाई। ये बातें उक्त लेखके चौदहवें और पन्द्रहवें श्लोकोंसे प्रकट होती हैं । देखिए:
कर्णाटलाटकेरलचोलशिरोरत्नरागिपदकमलः ।।
यश्च प्रणयिगणार्थितदाता कल्पदुमप्रख्यः ॥ १४ ॥ अर्थात्-जिसने कर्णाट, लाट, केरल और चोल देशोंको जीता और जो कल्पवृक्षके समान दाता हुआ।
युवराज विजित्याजी हत्वा तद्वाहिनीपतीन् ।
खड्ग ऊर्वीकृतो येन त्रिपुर्या विजिगीषुणा ॥ १६ ॥ (१) Ep. Ind, Vol II, P. 184. (२) माइसोरके पासका देश । (३) नर्मदाके पश्चिममें बड़ोदाके पासका देश । (४) मलबार---पश्चिमीय घाटसे कन्याकुमारी तकका देश ।
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