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मालवेके परमार ।
ऊपर कहे हुए श्रीश्रीहर्ष आदि नामोंके मिलनेसे पाया जाता है कि इस राजाका नाम श्रीहर्ष था, न कि श्रीहर्षसिंह; जैसा कि डाकर बूलरका अनुमान था और जिस परसे उन्होंने यह कल्पना की थी कि इस नामके दो टुकड़े होकर प्रत्येक टुकड़ा अलग अलग नाम बन गया होगा । श्रीहर्षका तो श्रीहर्ष ही रहा होगा और सिंहका अपभ्रंश सीयक बन गया होगा । परन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं मालूम होता। इसकी रानीका नाम बड़जा था। इस राजाने रुद्रपाटी देशके राजा तथा हूणोंको जीता। ___ उदयपुरकी प्रशस्तिके बारहवें श्लोकमें लिखा है कि इसने युद्ध खोट्टिगदेवं राजाकी लक्ष्मी छीन ली । धनपाल कवि अपने पायलच्छी नामक कोशके अन्तमें, श्लोक २७६ में लिखता है कि विक्रम संवत् १०२९ में जब मालवावालोंके द्वारा मान्यखेट लूटा गया तब धारानगरी-निवासी धनपाल कविने अपनी बहिन सुन्दराके लिए यह पुस्तक बनाई । धनपालका यह लिखना श्रीहर्षके उक्त विजयका दूसरा प्रमाण होनेके सिवा उस घटनाका ठीक ठीक समय भी बतलाता है। इसी लड़ाईमें श्रीहर्षका चचेरा भाई, बागड़का राजा कंकदेव, नर्मदाके तट पर, कर्णाटकवालों ( राठोड़ों) से लड़ता हुआ मारा गया । (१) लक्ष्मीरधोक्षजस्येव शशिमौलेरिवाम्बिका । वडजेत्यभवद्देवी कलत्रं यस्य भूरिव ॥ ८६ ॥
(-न० सा० च०, स. ११) परन्तु इसीका नाम भाटोंकी ख्यातोंमें वाग्देवी और भोजप्रबन्धमें रत्नावली लिखा है।
(२) खोटिंगदेव दक्षिणका राष्ट्रकूट ( राठोड़ ) राजा था । उसकी राजधानी मान्यखेट ( मलखेड-निजाम राज्यमें ) थी।
(३) भाटोंकी पुस्तकों में यह भी लिखा है कि इसने लूटमें ४५ हाथी, २१ रथ, ३०० घोड़े, २०० बैल और नौ लाख दीनार (एक तरहका सिक्का ) प्राप्त किये।
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