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भारतके प्राचीन राजवंश
हको बागड़का इलाका जागीरमें मिला । उसमें बाँसवाड़ा, सौंथ आदि नगर थे । इस डंबरसिंहके वंशका हाल आगे लिखा जायगा।
वैरिसिंहका दूसरा नाम वज्रटस्वामी था । उदयपुर ( गवालियर) की प्रशस्तिमें लिखा है कि उसने अपनी तलवारकी धारसे शत्रुओंको मार कर धारा नामक नगरी पर दखल कर लिया और उसका नाम सार्थक कर दिया।
६-सीयक ( दूसरा)। यह वैरिसिंहका पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसका दूसरा नाम श्रीहर्ष था । नवसाहसाङ्कचरितकी हस्तलिखित प्रतियों में इसके नाम श्रीहर्ष या सीयक, तिलकमअरीमें हर्ष और सीयक दोनों, और प्रबन्धचिन्तामणिकी भिन्न भिन्न हस्तलिखित प्रतियोंमें श्रीहर्ष, सिंहभट और सिंहदन्तभट पाठ मिलते हैं । तथा पूर्वोक्त उदयपुरकी प्रशस्तिमें इसका नाम श्री. हर्षदेव और अथूणाके लेखमें श्रीश्रीहर्षदेव लिखा है।
विरुद्ध, सहायता दी । इसके बदलेमें उसने अपनी ललिता अपनी नामक कन्या इसे ब्याह दी । इसका राज्य २७ वर्ष निश्चित किया जाता है और यह भी कहा जाता है कि यह उज्जेनमें, ७२ वर्षकी अवस्थामें, मृत्युको प्राप्त हुआ। ( पर. धार• माल०, पृ. ३) (१) जातस्तस्माद्वैरिसिंहोन्यनाम्ना लोको ब्रूते [ वज्रट ] स्वामिनं यम् । शत्रोदग्गै धारयासेनिहत्य श्रीमद्धारा सूचिता येन राज्ञा [११]
(-एपि० इण्डि०, जि० १, भा० ५) (२) तस्मादभूदरिनरेस्व (श्व ) र संघसेवा(ना) गजगजेन्द्ररवसुन्दरतूर्यनादः। श्रीहर्षदेव इति खोहिगदेवलक्ष्मी जग्राह यो युधि नगादसमप्रतापः [१२]
(-एपि० इण्डि०, जि० १, भाग ५) .. ( ३) श्रीश्रीहर्षनृपस्य मालवपतेः कृत्वा तथारिक्षयं ।' १९
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