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मालवेके परमार।
३-सीयक। यह वैरिसिंहका पुत्र और उत्तराधिकारी था' । इन दोनों राजाओंका अब तक कोई विशेष हाल नहीं मालूम हुआ।
४-वाक्पतिराज । यह सीयकका पुत्र था और उसके पीछे गद्दी पर बैठा। इसके विष- . यमें उदैपुर ( गवालियर ) की प्रशस्तिमें लिखा है कि यह अवन्तीकी तरुणियोंके नेत्ररूपी कमलोंके लिए सूर्य-समान था । इसकी सेनाके घोड़े गङ्गा और समुद्रका जल पीते थे। इसका आशय हम यही समझते हैं कि उसके समयमें अवन्ती राजधानी हो चुकी थी और उसकी विजययात्रा गङ्गा और समुद्र तक हुई थीं।
५-वैरिसिंह (दूसरा )। यह अपने पिताका उत्तराधिकारी हुआ । इसके छोटे भाई डंबरसिं. (१) तस्माद्बभूव वसुधाधिपमौलिमालारत्नप्रभारुचिररजितपादपीठः । श्रीसीयकः करकृपाणजलोमिमग्नस( शत्रुव्रजो विजयिनां धुरि भूमिपालः [६]
(एपि० इण्डि०, जि० १, भा. ५) . (२) तस्मादवन्तितरुणीनयनारविन्दभास्वानभूत्करकृपाणमरीचिदीप्तः। श्रीवाक्पतिः शतमखानुकृतिस्तुरलागङ्गा-समुद्र-सलिलानि पिबन्ति यस्थ [१०]
(एपि० इण्डि०, जि० १, भा० ५) ( ३ ) भाटोंकी ख्यातोंमें लिखा है कि इसने २७ दिनकी लड़ाई के बाद काम- . रूप ( आसाम ) पर विजय प्राप्त की थी। यह वाक्य भी पूर्वोक्त उदयपुरकी प्रशस्तिके लेखको पुष्ट करता है । इन्हीं पुस्तकोंमें इसकी स्त्रीका नाम कमलादेवी मिला है । ३९ वर्ष राज्य करनेके बाद रानीसहित कुरुक्षेत्रमें जाकर इसका वानप्रस्थ होना भी इसीमें वर्णित है । (परमार आव् धार एंड मालवा, पृ. २-३ )
(४) भाटोंकी ख्यातोंमें लिखा है कि वीरसिंह वीर्थयात्राके लिए गया पहुँचा। वहाँ उसने गौड़के राजाको, वगावत करनेवाली उसकी बौद्ध प्रजाके .
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