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परमार-चंश ।
संख्यामें छप चुका है । तीसरा लेख विक्रम संवत् १२४६ का मधुसूदनके मन्दिरमें मिला है । चौथा विक्रम संवत् १२६५ का कनखल तीर्थमें मिला है । और पाँचवाँ १२७६ (ईसवी सन १२१९) का है। यह मकावले गाँवके पासवाले एक तालाव पर मिला है । इस राजाका एक लेख रोहिड़ा गाँवमें और भी है । पर उसमें संवत् टूटा हुआ है। ___ इसके दो रानियाँ थीं-गीगादेवी और शृङ्गारदेवी । ये मण्डलेश्वर चौहान कल्हणकी लड़कियाँ थीं। इसकी राजधानी चन्द्रावती थी। इसके अधीन १८०० गाँव थे। शृङ्गारदेवीने पार्श्वनाथके मन्दिरके लिए कुछ भूमिदान किया था । इस राजाने एक बाणसे बराबर बराबर खड़े हुए तीन भैंसोंको मारा था। यह बात विक्रम-संवत् १३४४ के पाटनारायणके लेखसे प्रकट होती है। उसमें लिखा है:
एकबाणनिहितत्रिलुलायं यं निरीक्ष्य कुरुयोधसदृक्षम् । उक्त श्लोकके प्रमाणस्वरूप आबूके अचलेश्वरके मन्दिरके बाहर मन्दाकिनी नामक कुण्ड पर धनुषधारी धारावर्षकी पूरे कदकी पाषाणमूर्ति आज तक विद्यमान है । उसके सामने पूरे कदके पत्थरके तीन भैंसे बराबर बराबर खड़े हैं। उनके पेटमें एक छिद्र बना हुआ है।
धारावर्षके छोटे भाईका नाम प्रल्हादन था । वह बड़ा विद्वान था। उसका बनाया हुआ पार्थपराक्रम-व्यायोग नामक नाटक मिला है। कीर्तिकौमुदीमें और पूर्वोक्त वस्तुपाल-तेजपालकी प्रशस्तिमें गुर्जरेश्वरके पुरोहित सोमेश्वरने उसकी विद्वत्ताकी प्रशंसा की है । उसने अपने नामसे प्रल्हादनपुर नामक नगर बसाया, जो आज कल पालनपुर नामसे प्रसिद्ध है । यह राजा विद्वान होनेके साथ ही पराक्रमी भी था । वस्तुपालतजपालकी प्रशस्तैिसे ज्ञात होता है कि यह सामन्तसिंहसे लड़ा था। (१) सामन्तसिंहसमितिक्षितिविक्षितीजाः श्रीगुर्जरक्षितिपरक्षणदक्षिणासिः । प्रह्लादनस्तदनुजो दनुजोत्तमारिचरित्रमत्रपुनरुज्ज्वलयाञ्चकार ॥ ३८ ॥
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