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भारत के प्राचीन राजवंश
किले उसे बिलकुल ही खाली मिले । आबूके नीचेकी एक घाटीमें रायकर्ण और दाराबर्स (धारावर्ष ) बड़ी सेना लेकर लड़ने को तैयार थे । उनका मोरचा मज - बूत होने से उनपर हमला करनेकी हिम्मत मुसलमानोंकी न पड़ी । पहले इसी स्थान पर सुलतान शहाबुद्दीन गोरी घायल हो चुका था । अतः इनको भय हुआ कि कहीं सेनापति ( कुतबुद्दीन ) की भी वही दशा न हो । मुसलमानों को इस प्रकार आगा-पीछा करते देख हिन्दू योद्धाओंने अनुमान किया कि वे डर गये हैं । अतः घाटी छोड़कर वे मैदानमें निकल आये । इस पर दोनों तरफसे युद्धकी तैयारी हुई। तारीख १३ रबिउल अव्वल के प्रातः काल से मध्याह्न तक भीषण लड़ाई हुई । लड़ाईमें हिन्दुओंने पीठ दिखलाई । उनके ५०,००० आदमी मारे गये और २०,००० कैद हुए ।
तारीख फरिश्तामें पाली के स्थान पर बाली लिखा है । ऊपर हम आबूके नीचे की घाटी में सुलतान शहाबुद्दीन गोरीका घायल होना लिख चुके हैं । यह युद्ध हिजरी सन् ५७४ ( ईसवी सन् १९७८ - विक्रमसंवत् १२३५ ) में हुआ था । तबकाते नासिरी में लिखा है कि जिस समय सुलतान मुलतानके मार्ग से नहरवाले ( अनहिलवाड़ ) पर चढ़ा उस समय वहाँका राजा भीमदेव बालक था । पर उसके पास बड़ीभारी सेना और बहुतसे हाथी थे । इसलिए उससे हारकर सुलतानको लौटना पड़ा । यह घटना हिजरी सन ५७४ में हुई थी ।
इस युद्ध में भी धारावर्षका विद्यमान होना निश्चय है । यह युद्ध भी आबूके नीचे ही हुआ था । उस समय भी धारावर्ष आबूका राजा और
गुजरातका सामन्त था ।
धारावर्ष के समय के पाँच लेख मिले हैं । पहला विक्रम संवत् १२२० ( ईसवी सन १९६३ ) का लेख कायद्रा ( सिरोही राज्य ) के काशीविश्वेश्वरके मन्दिर में | दूसरा विक्रमसंवत् १२३७ का ताम्रपत्र हाथल गाँव में | इस ताम्रपत्र में धारावर्षके मन्त्रीका नाम कोविदास यह ताम्रपत्र इंडियन ऐंटिक्वेरीकी ईसवी सन् १९१४ की
है ।
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