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परमार-चंश।
विक्रम संवत् १२२० का धारावर्षका एक शिलालेख कायद्रा गाँव (सिरोही इलाके ) के बाहर, काशी-विश्वेश्वरके मन्दिरमें, मिला है। अतः यशोधवलका देहान्त उक्त संवत्के पूर्व ही हुआ होगा ।
१४-धारावर्ष। यह यशोधवलका ज्येष्ठ पुत्र था । यही उसका उत्तराधिकारी हुआ। यह राजा बड़ा ही वीर था। इसकी वीरताके स्मारक अबतक भी आबूके आसपासके गाँवोंमें मौजूद हैं । यहाँ यह धार-परमार नामसे प्रसिद्ध है। पूर्वोक्त वस्तुपाल-तेजपालकी प्रशस्तिके छत्तीसवें श्लोकमें इसकी वीरताका इस तरह वर्णन किया गया है:
शत्रुश्रेणीगलविदलनोनिद्रनिस्त्रिंशधारो धारावर्षः समजनि सुतस्तस्य विश्वप्रशस्यः । क्रोधाक्रान्तप्रधनवसुधा निश्चले यत्र जाता
श्चोतन्नेत्रोत्पलजलकणः कोंकणाधीशपल्यः ॥ ३६ ॥ __ अर्थात्-यशोधवलके बड़ा ही वीर और प्रतापी धारावर्ष नामक पुत्र हुआ । उसके भयसे कोंकण देशके राजाकी रानियोंके आँसू गिरे । __कोंकणके शिलारवंशी राजा मल्लिकार्जुन पर कुमारपालने फौज भेजी थी। परन्तु पहली बार उसको हार कर लौटना पड़ा। परन्तु दूसरी बारकी चढ़ाईमें मल्लिकार्जुन मारा गया । सम्भव है, इस चढाईमें धारावर्ष भी गुजरातकी सेनाके साथ रहा हो। ___ अपने स्वामी गुजरातके राजाओंके सहायतार्थ धारावर्ष मुसलमानोंसे भी लड़ा था। यद्यपि इसका वर्णन संस्कृतलेखोंमें नहीं है, तथापि फ़ारसी तवारीखोंसे इसका पता लगता है। ताजुल-मआसिरमें लिखा है:
हिजरी सन् ५९३ (विक्रम-सवत् १२५४ ई०सन् ११९७ ) के सफ़र महीनेमें नहवाले ( अनहिलवाड़े ) के राजा पर खुसरो (कुतबुद्दीन ऐबक) ने चढ़ाई की। जिस समय वह पाली और नाडोलके पास आया उस समय यहाँके
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