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भारतके प्राचीन राजवंश
६-रत्नदेव (द्वितीय)। यह जाजल्लदेवका पुत्र था और उसके बाद राज्य पर बैठा। इसने कलिङ्गदेशके राजा चोड गङ्गको जीता । इस राजाके ताँबेके सिक्के मिले हैं । उनकी एक तरफ 'श्रीमद्रस्नदेवः' लिखा है और दूसरी तरफ हनुमानकी मूर्ति बनी है । परन्तु इस शाखामें रत्नदेव नामके दो राजा हुए हैं । इसलिए ये सिक्के रत्नदेव प्रथमके हैं या रत्नदेव द्वितीयके, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता । इसके पुत्रका नाम पृथ्वीदेव था।
७-पृथ्वीदेव (द्वितीय)। ___ यह रत्नदेवका पुत्र और उत्तराधिकारी था। इसके सोने और ताँबेके सिक्के मिले हैं। इन सिक्कों पर एक तरफ 'श्रीमत्पृथ्वीदेवः' खुदा है
और दूसरी तरफ हनुमानकी मूर्ति बनी है। यह मूर्ति दो प्रकारकी पाई जाती है। किसी पर द्विभुज और किसी पर चतुर्भुज ।
इस शाखामें तीन पृथ्वीदेव हुए हैं । इसलिये सिक्के किस पृथ्वीदेवके समयके हैं यह निश्चय नहीं हो सकता । पृथ्वीदेवके समयके दो शिलालेख मिले हैं । प्रथम चे० सं० ८९६ ( वि० सं० १२०२ ई० स० ११४५ ) का और दूसरा चे० सं० ९१० (वि० सं० १२१६-ई० स० ११५९) का है। उसके पुत्रका नाम जाजल्लदेव था।
८-जाजल्लदेव (द्वितीय)। यह अपने पिता पृथ्वीदेव दूसरेका उत्तराधिकारी हुआ । चे० सं०. ९१९ ( वि० सं० १२२४-ई० सं० ११६७ ) का एक शिलालेख जाजल्लदेवका मिला है । इसके पुत्रका नाम रत्नदेव था ।
९-रत्नदेव (तृतीय)। यह जाजल्लदेवका पुत्र था और उसके पीछे गद्दी पर बैठा । यह चे. (१) Ep. Ind. Vol. I. P. 40. (२) 0. A. S. R, 17, 76 and.. 17 p,xx.
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