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हैहय-वंश ।
अनेक यज्ञ किये । इसकी रानीका नाम राजल्ला था, जिससे जाजल्लदेव नामका पुत्र हुआ।
५-जाजल्लदेव (प्रथम)। यह पृथ्वीदेवका पुत्र था, तथा उसके पीछे उसका उत्तराधिकारी हुआ। इसने अनेक राजाओंको अपने अधीन किया । चेदीके राजासे मैत्री की, कान्यकुब्ज (कन्नौज) और जेजाकभुक्ति ( महोबा ) के राजा इसकी वीरताको देख करके स्वयं ही इसके मित्र बन गए । इसने सोमेश्वरको जीता । आंध्रखिमिड़ी, वैरागर, लंजिका, भाणार, तलहारी, दण्डकपुर, नंदावली और कुक्कुटके मांडलिक राजा इसको खिराज देते थे । इसने अपने नामसे जाजल्लपुर नगर बसाया । उसी नगरमें मठ, बाग और जलाशयसहित एक शिवमन्दिर बनवा कर दो गाँव उस मन्दिरके अर्पण किये। इसके गुरुका नाम रुद्रशिव था, जो दिङ्नाग आदि आचार्योंके सिद्धान्तोंका ज्ञाता था । जाजल्लदेवके सान्धिविग्रहिकका नाम विग्रहराज था । इस राजाके समय शायद चेदीका राजा यशःकर्ण, कन्नौजका राठोड़ गोविन्दचन्द्र और महोबेका राजा चंदेल कीर्तिवर्मा होगा। रत्नपुरके हैहयवंशी राजाओंमें जाजल्लदेव बड़ा प्रतापी हुआ; आश्चर्य नहीं कि इस शाखामें प्रथम इसीने स्वतन्त्रता प्राप्त की हो । इसकी रानीका नाम सोमलदेवीं था । इस राजाके ताँबेके सिक्के मिले हैं। उनमें एक तरफ 'श्रीमज्जाजलदेवः' लिखा है और दूसरी तरफ हनुमानकी मूर्ति बनी है । चे० सं० ८६६ (वि० सं० १९७१ ई० स० १११४ ) का रत्नपुरमें एक लेखे जाजल्लदेवके समयका मिला है । इसके पुत्रका नाम रत्नदेव था।
(१) Ind. Ant. Vol. XXII, P. 92. (२) Ep. Ind. Vol. I. P. 32.
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