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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैहय-वंश । अनेक यज्ञ किये । इसकी रानीका नाम राजल्ला था, जिससे जाजल्लदेव नामका पुत्र हुआ। ५-जाजल्लदेव (प्रथम)। यह पृथ्वीदेवका पुत्र था, तथा उसके पीछे उसका उत्तराधिकारी हुआ। इसने अनेक राजाओंको अपने अधीन किया । चेदीके राजासे मैत्री की, कान्यकुब्ज (कन्नौज) और जेजाकभुक्ति ( महोबा ) के राजा इसकी वीरताको देख करके स्वयं ही इसके मित्र बन गए । इसने सोमेश्वरको जीता । आंध्रखिमिड़ी, वैरागर, लंजिका, भाणार, तलहारी, दण्डकपुर, नंदावली और कुक्कुटके मांडलिक राजा इसको खिराज देते थे । इसने अपने नामसे जाजल्लपुर नगर बसाया । उसी नगरमें मठ, बाग और जलाशयसहित एक शिवमन्दिर बनवा कर दो गाँव उस मन्दिरके अर्पण किये। इसके गुरुका नाम रुद्रशिव था, जो दिङ्नाग आदि आचार्योंके सिद्धान्तोंका ज्ञाता था । जाजल्लदेवके सान्धिविग्रहिकका नाम विग्रहराज था । इस राजाके समय शायद चेदीका राजा यशःकर्ण, कन्नौजका राठोड़ गोविन्दचन्द्र और महोबेका राजा चंदेल कीर्तिवर्मा होगा। रत्नपुरके हैहयवंशी राजाओंमें जाजल्लदेव बड़ा प्रतापी हुआ; आश्चर्य नहीं कि इस शाखामें प्रथम इसीने स्वतन्त्रता प्राप्त की हो । इसकी रानीका नाम सोमलदेवीं था । इस राजाके ताँबेके सिक्के मिले हैं। उनमें एक तरफ 'श्रीमज्जाजलदेवः' लिखा है और दूसरी तरफ हनुमानकी मूर्ति बनी है । चे० सं० ८६६ (वि० सं० १९७१ ई० स० १११४ ) का रत्नपुरमें एक लेखे जाजल्लदेवके समयका मिला है । इसके पुत्रका नाम रत्नदेव था। (१) Ind. Ant. Vol. XXII, P. 92. (२) Ep. Ind. Vol. I. P. 32. ५७ For Private and Personal Use Only
SR No.020119
Book TitleBharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1920
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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